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प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई आपको आ. कनक हरलालका जी
संदेशपरक लघुकथा हुई है,बधाई। ' फूलों के सुगंध से बोझिल ठंडी हवा ',ऐसा भी होता है क्या।संदेह है।
हार्दिक बधाई आदरणीय कनक जी।बेहतरीन संदेश परक लघुकथा।
स्वतंत्र रूप से यह एक बढ़िया लघुकथा है आदरणीया कनक हरलालका जी जिस हेतु हार्दिक बधाई प्रेषित है। बाकी मुझे भी ऐसा लगता है कि यह रचना प्रदत्त विषय से पूरी तरह न्याय नहीं कर पा रही। सादर।
बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजिएगा आदरणीया कनक दी।
लघुकथा : बागडोर
पूरा देश लॉकडाउन से गुज़र रहा था। रात के लगभग 9 बज रहे होंगे, अमित को छोड़कर घर के सभी सदस्य खाना खा चुके थे। अमित हाथ-मुँह धोकर खाना खाने बैठा ही था कि बाहर किसी की आवाज़ सुनाई दी। वह खाने की थाली छोड़ बालकोनी से देखने लगा। एक महिला गोद में बच्चा लिए खड़ी थी।
“क्या बात है आंटी?”
“बाबू, सुबह से कुछ नहीं खाया, कुछ खाने को हो तो दे दो।”
“आप रुकिए आंटी, देखते हैं।”
तब तक घर के और सदस्य भी आ गए, अमित सीधे किचन में गया और देखा कि कुछ रोटी और थोड़ी सब्ज़ी बची थी, उसने उसे उठाया और अपनी थाली का खाना लेते हुए नीचे चला गया।
“ये लो आंटी, कुछ रोटी-सब्ज़ी है, और हाँ, कल सुबह भी आ जाना ....”
अमित के दादा जी आँखें बंद कर अपने दादा को याद कर मन-ही-मन कह रहे थे,
“दादा जी, देख लीजिए! आपके द्वारा सौंपी गई संस्कारों का धरोहर अब मेरे पोते की हाथों में सुरक्षित है।”
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
आदरणीय गणेश जी बाग़ी साहिब, आपकी लघु कथा बहुत पसंद आई, इस पर दाद और बधाई स्वीकार करें। "संस्कारों की धरोहर" – इस से ज़ियादा क़ीमती धरोहर शायद होती ही नहीं इंसान के पास, जिसका आपने अपने अफ़साने में बड़ी कुशलता से वर्णन किया है।
आदरणीय रवि भसीन साहब, लघुकथा आपको पसंद आयी, सृजन सार्थक हुआ, बहुत बहुत आभार।
बेहतरीन संदेश देती हुई लघुकथा के लिए बधाई ।खज की परिस्थिति में मानवता को जीवित रखना मनुष्य की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है।
आदरणीया कनक हरलालिका जी, सराहना हेतु बहुत बहुत आभार।
आदरणीय बागी जी, बहुत सुंदर लघुकथा के लिए बधाई हो l
उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीय मोहन बेगोवाल जी.
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