परम आत्मीय स्वजन,
ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 69 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब अज्म शाकिरी साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|
"मेरे अन्दर कोई सैलाब उतारा उसने"
2122 1122 1122 22
फाइलातुन फइलातुन फइलातुन फेलुन
१. पहला रुक्न फाइलातुनको फइलातुन अर्थात २१२२ को ११२२भी किया जा सकता है
२. अंतिम रुक्न फेलुन को फइलुन अर्थात २२ को ११२ भी किया जा सकता है|
मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 25 मार्च दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक २६ मार्च दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें:-
विशेष अनुरोध:-
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें |
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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आदरनीय अहमद भाई , खूब सूरत गज़ल के लिये दिली मुबारकबाद आपको ।
बहुत ही खुबसूरत ग़ज़ल कही है आपने आदरणीय अहमद जी , बधाई कबूल फरमाइयेगा .
अक्स मेरा ही मेरे घर में उभारा उसने |
बिखरा सामान सलीक़े से संवारा उसने |
वाह ! वाह ! बस वाह !
दनदनाता हुआ आया है वज़ीरे दौलत
दाब रक्खा है ग़रीबी का पिटारा उसने |
ग़ज़ब !
है तो माज़ूर मगर समझो न मजबूर उसे
वक़्त पर मोड़ा है दरिया का भी धारा उसने |
बहुत खूब !
जिसने इन आँखों को अश्कों की रवानी दी है
मेरे अंदर कोई सैलाब उतारा उसने |
ये ग़िरह भी बस वाह !
उसकी करतूत सबब बन गयी बर्बादी की
पांव चादर से ज़ियादा जो पसारा उसने |
वाह !
मार डाले था सभों को वो सुलगता सावन
साल हा साल बिना जल जो गुज़ारा उसने |
दर्द छलक आया है कहन के साथ
तीर पर तीर अँधेरे में चलाये हम ने
सैद तो हम ने किया चुन लिया सारा उसने |
मैं ही क्या बज़्म में हैरान सभी थे अहमद
जब अचानक ही मुझे हंस के पुकारा उसने
वाह !
आदरणीय अहमद हसन साहब ! शायद मैं आपकी पहली ग़ज़ल सुन रहा हूँ. लेकिन इतनी मुकम्मल और इतनी संयत ग़ज़ल से ग़ुज़र रहा हूँ कि दिल बाग़-बाग़ हो उठा है.
आदरणीय अहमद हसन जी, बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने. बहुत सधे हुए अशआर कहे है आपने....शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं सादर
दनदनाता हुआ आया है वज़ीरे दौलत
दाब रक्खा है ग़रीबी का पिटारा उसने | खूब कहा गरीबों के हिस्से झुंझुना ही आता है
उसकी करतूत सबब बन गयी बर्बादी की
पांव चादर से ज़ियादा जो पसारा उसने | बहुत उम्दा नसीहत दी ...
तीर पर तीर अँधेरे में चलाये हम ने
सैद तो हम ने किया चुन लिया सारा उसने | उम्दा शेर हुआ है
मैं ही क्या बज़्म में हैरान सभी थे अहमद
जब अचानक ही मुझे हंस के पुकारा उसने | शानदार मक्ता हुआ है जनाब अहमद साहब बहुत मुबारकबाद...
डूबते वक़्त दिया जिसको सहारा उसने
कर लिया पार उतरते ही किनारा उसने
फालतू आज समझकर जो मुझे काट रहा
मेरी ही छाँव में बचपन था गुजारा उसने
देख बदले हुए हालात हवाओं के रुख
मौज में छोड़ दिया जिस्म-ए-शिकारा उसने
बात होने लगी बिन बात हमारी अक्सर
बज्म में नाम लिया जबसे हमारा उसने
झुक गया खुद ही शज़र देख लपकती आरी
खूब आसान किया काम तुम्हारा उसने
जात औ धर्म की माचिस से लगा चिंगारी
हाय आँखों से पिया खून-ए-नजारा उसने
कुछ दिनों का ये जजीरा न रुका कोई यहाँ
जाना पड़ता है तभी जब भी पुकारा उसने
देश के वीर जवानों को सुनाकर गाली
मेरे अन्दर कोई सैलाब उतारा उसने
मौलिक एवं अप्रकाशित
शिज्जू भैया आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हो गया दिल से आभार आपका .
आ० पंकज जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई दिल से बहुत- बहुत आभार आपका .
हमेशा की तरह ..बहुत अच्छी ग़ज़ल ...
सादर
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