आदरणीय साथियो,
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इस टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आ तेज वीर सिंह जी
मानव मन की विचार तरंगों को निरूपित करती लघुकथा हुई है आ.भाई विनय जी।हार्दिक बधाई।
इस टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आ मनन कुमार सिंह जी
आदरनीय विनय जी , लघुकथा के अंत में जो कहा गया , व्ही सच है , हमारी मन की हालत ही इस के लिए जिमेवार है, हमें समय के साथ चलने के लिए सोच को भी बदलना होगा , मुबारकबाद जी
इस टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आ मोहन बेगोवाल जी
समाज मे व्याप्त कुछ कुरीतियों की सबने ही कीमत चुकाई है। किसी ने कल किसी ने आज। हार्दिक बधाई इस प्रभावशाली रचना के लिये आदरणीय विनय जी।
इस टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आ प्रतिभा पांडे जी
आ. भाई विनय जी, अच्छी लघुकथा हुई है । हार्दिक बधाई।
इस टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आ लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी
अच्छा विषय उठाया है आपने आदरणीय विनय कुमार जी पर ट्रीटमेण्ट बेहतर हो सकता था। बाकी तथ्य इस कथ्य के विपरीत कुछ और ही गवाही देते हैं। फिलहाल हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए।
कीमत
सुबह सैर कर रहा था, इक आवाज़ मेरे कानों से टकराई, साहिब जी नमस्कार।
उस ने आज बहुत सुंदर लाल कमीज़, काली ऐनक और सिर पर टोपी रखी हुई थी।
धीरे से उस ने मेरे पास ट्राई साइकिल लाते हुए
कहा, "साहिब जी, आज भोले नाथ का दिन है, आज कुछ हो जाए।"
"नहीं भाई, आज शिव रात्रि नहीं, आज तो जन्म अष्टमी है।"
"मैंने उस के ट्राईसाईकिल के पास जाते हुए कहा।"
"आप को किस ने बताया, आज भोले नाथ का दिन।"
"सभी लोग कह थे।" मगर मुझे क्या पता, मैं तो तैयार हो कर मंदिर जा रहा हूं।
"क्या कह रहे हैं, सभी लोग?" मैंने फिर उस से पूछा
"जो आप कह रहे हैं, सर जी, हो जाए फिर, आज, उस ने अपनी बात को फिर कहा।"
मैं भी मंदिर में चढ़ावा चडाना चाहता हूं, उस ने मुझे ज़िंदगी दी और भी बहुत कुछ भी, मुझे भी तो उस को ज़िंदगी देने के लिए कुछ क़ीमत उठानी चाहिए, उस ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा। "
उस की नज़र मेरे चेहरे पर आ टिकी, मैं सोच रहा था, ये क्या चुका पाएगा, इस को मिली ज़िन्दगी की कीमत, जो ख़ुद का घर तो ख़ुद चला नहीं पाता, ये जो अर्पण भी करेगा, उस के लिए ज़मीर की क़ीमत देगा। मैं, ये सोचता हुआ आगे बढ गया ।
मौलिक व आप्रकाशित
हार्दिक बधाई आदरणीय मोहन बेगोवाल जी। बहुत सुंदर लघुकथा।
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