परम आत्मीय स्वजन,
ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 79 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब मोहम्मद अहमद रम्ज़ साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|
" ऐसा लगता है कि क़िस्सा मुख़्तसर होने को है "
फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन
2122 2122 2122 212
मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 27 जनवरी दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 28 जनवरी दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें:-
विशेष अनुरोध:-
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें |
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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वाह साहिब बधाई स्वीकार करें
आदरणीय अशफ़ाक अली जी, आपने बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है. शेर दर शेर दाद हाज़िर है-
ये ख़ुशी का जश्न शायद रात भर होने को है
कोयलों की कूक से लगता सहर होने को है.................... मतला बढ़िया है. मैं उल और सानी में राब्ता को लेकर असमंजस में हूँ.
वो भी अब तिरछी नज़र से देखते हैं आजकल
मुझको लगता है मोहब्बत का असर होने को है................. बहुत बढ़िया
रो रहा था कोई छुपकर फिर मुझे ऐसा लगा
मेरा दामन आंसुओं से तर-बतर होने को है............ वाह वाह बहुत खूब
चार दिन की चांदनी है फिर अंधेरी रात में
धीरे-धीरे ज़िन्दगी अपनी बसर होने को है................. बढ़िया
उसकी सांसों पर टिकी है ज़िन्दगी की आस फिर
ऐसा लगता है कि क़िस्सा मुख़्तसर होने को है...........................बढ़िया गिरह
ज़िन्दगी गुजरी थी अपनी जिस जगह अपनों के साथ
रफ्ता रफ्ता वो हवेली भी खंडर होने को है...................... खंडर के प्रयोग को लेकर असमंजस में हूँ.
कल भी गुज़री थी इधर से जानलेवा दोस्तो
आज फिर वो ही क़यामत का ग़ुज़र होने को है................. क़यामत का/की ... मार्गदर्शन निवेदित है.
लग गई कल आंख बिस्तर पर तो ये आया ख्याल
जिंदगी का आख़री अपना सफर होने को है.......................... बढ़िया
दर्द-ए-दिल बढ़ने लगा है याद से 'गुलशन' तेरी
अब तो लगता है दुआओं का असर होने को है..................... मक्ता भी बढ़िया है.
इस ग़ज़ल पर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं सादर
आदरणीय समर कबीर जी, आपकी इस्लाह से मंच सदैव लाभान्वित होता है. हार्दिक आभार आपका. सादर
आदरणीय अशफाक भाई , बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने , गिरह भी खूब लगायी है , बधाइयाँ स्वीकार करें ।
आदरणीय समर भाई जी की बातों का खयाल कीजियेगा ।
एक बात और कि , आँख लगने के बाद ख़याल नही ख्वाब आते हैं ।
बहुत बढ़िया आदरणीय , बहुत खूब कही पर आ० समर कबीर साहिब की टीप हमारे लिए भी एक सबक है , सादर
मुहतरम जनाब अशफ़ाक़ साहिब, अच्छी ग़ज़ल हुई है , शेर दर शेर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ
बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है मोहतरम दाद कुबूलें कई बातों में वरिष्ट शायर मार्गदर्शन कर ही चुके दुबारा कहना न चाहूँगी
गिरह भी शानदार है
आदरणीय सुरेन्द्र जी, बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने. शेर-दर-शेर पुनः उपस्थित होता हूँ. सादर
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