For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा-अंक 81 में शामिल सभी ग़ज़लों का संकलन (चिन्हित मिसरों के साथ)

परम आत्मीय स्वजन 

81वें तरही मुशायरे का संकलन हाज़िर कर रहा हूँ| मिसरों को दो रंगों में चिन्हित किया गया है, लाल अर्थात बहर से खारिज मिसरे और हरे अर्थात ऐसे मिसरे जिनमे कोई न कोई ऐब है|

_________________________________________________________________________________

Nilesh Shevgaonkar

हिकमतें सदियों की पल भर में कहानी हो गईं,
झूठ फैला, सच की तहज़ीबें पुरानी हो गईं.

नाख़ुदा शश्दर, समुन्दर भी ठगा सा रह गया,
कश्तियाँ तूफां से मिलकर बादबानी हो गईं.

वक्त ने कुछ रंजिशें रक्खीं अगर मेरे खिलाफ़,
रंजिशें कुछ तो अगरचे ना-गहानी हो गईं.

कुछ महकते ख्व़ाब अक्सर छेड़ जाते हैं मुझे,
उन की यादें ज़ह’न-ओ-दिल की रातरानी हो गईं.

शोर-ए-क़ातिल दौर-ए-हाज़िर का अदब-आदाब है
दम-ब-दम बिस्मिल की आहें बद-ज़बानी हो गईं.


वस्ल पर पहले-पहल ये शोर करती थीं बहुत,
धीरे-धीरे चूड़ियाँ कितनीं सियानी हो गईं.

हम ने जो शर्तें मुहब्बत के लिये मंज़ूर कीं,
अब वही शर्तें हमारी ना-तवानी हो गईं.

आप को फ़ुर्सत से पढ़ने की तमन्ना थी मगर,
“जिन को लिखना था वो सब बातें ज़बानी हो गईं.”

जब फ़ज़ाओं में धुआँ बन के घुला मेरा बदन,

“नूर’ मेरी सब अनाएँ पानी-पानी हो गईं.

__________________________________________________________________________

ASHFAQ ALI (Gulshan khairabadi)

कल हक़ीक़त थीं जो बातें अब कहानी हो गईं
कैसी कैसी सूरतें दुनिया से फानी हो गईं

औरतें दौरे तरक्की में सयानी हो गईं
जो कभी थी दासियां वह आज रानी हो गईं

जो रवायत छोड़कर अजदाद मेरे जा चुके
दौर-ए-हाज़िर में वो सब की सब कहानी हो गईं

तन्हा तन्हा ज़िन्दगी थी याद जब आयी तेरी
जितनी पस मुर्दा थीं सब रातें सुहानी हो गईं।

आरज़ू थी उनको खत लिखूं मगर वो आ गए
जिन को लिखना था वो सब बातें ज़बानी हो गईं

जो अता की थी मोहब्बत दर्द-ओ-ग़म आहोफ़ुगां
मेरे दिल के वास्ते वो सब निशानी हो गईं

आपसे मैंने यकीनन कुछ नहीं ऐसा कहा
शर्म से क्यों आप आख़िर पानी पानी हो गईं

जो ख़बर करनी है वो ईमेल से कर दीजिए
ख़त किताबत की तो अब बातें पुरानी हो गईं

दौर इंटरनेट का है जो चाहो 'गुलशन' देख लो
छोटी छोटी बच्चियां भी अब सयानी हो गईं

________________________________________________________________________________

सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप'

वो सभी बचपन की यादें अब कहानी हो गईं
वक़्त आगे बढ़ गया नजरें पुरानी हो गईं ||

बाप माँ का था अदब जिन्दा यहाँ तहज़ीब थी
लोग कहते हैं कि ये रस्में पुरानी हो गईं' ||

ज़िन्दगी के रास्ते बेहद कठिन ही थे मग़र
तेरी रहमत से खजायें भी सुहानी हो गईं ||

करना था मैसेज मुझको,फोन उनका आ गया
"जिनको लिखना था वो सब बातें ज़बानी हो गईं"

लड़कियाँ बालिग़ हुईं इस दौर की तालीम से
उम्र छोटी है मगर वो सब सियानी हो गईं ||

हर किसी की आरज़ू पूरी ख़ुदा भी क्या करे
जब यहाँ सबकी मुरादें आसमानी हो गईं ||

__________________________________________________________________________________

भुवन निस्तेज

ज़र्द पत्तों की सदाएँ बे-मआनी हो गईं
जंगलों में यूँ हवाओं की रवानी हो गईं ।

चार किस्से सुन लिए बातें सुहानी हो गईं
अब चलें भी कश्तियों में बादबानी हो गईं ।

कौन कह दें मौसमों का क्या रहा जाने मिज़ाज़
मिल गईं तूफ़ान से नदियाँ दिवानी हो गईं ।

अब उन्हें देखा भी तो साँसें मचलती हैं नहीं
धडकनें ये ठोकरों से ही सयानी हो गईं ।

क्यों न खुशियाँ , ग़म , हँसी , आंसू मिलेंगे एक साथ
आज ग़ज़लें अनुभवों की तर्जुमानी हो गईं ।

एक ख़त कोरा उन्हें भेजा है अब की बार भी
' जिनको लिखना था वो सब बातें जुबानी हो गईं ।

ज़िक्र जो उसका हुआ तो क्यों न महकेगी ग़ज़ल
उसको छूकर जब हवाएँ जाफरानी हो गईं ।

ख्वाब देखा बन गए सूरज गगन में अब की बार
कुछ सितारों से ही ऐसी बदगुमानी हो गईं ।

पतझड़ों में टूटकर गिरते रहे खोते रहे
जब भी पत्तों ने कहा ' शाखें पुरानी हो गईं !"

फ़ाइलों के आंकड़ों की मानियेगा तो ज़नाब
बस्तियाँ सारी यहाँ की राजधानी हो गईं ।

ये जली बस्ती, ये पागल से यहाँ के लोग सब
आपके होने की देखें तो निशानी हो गईं ।

________________________________________________________________________________

Samar kabeer


देख कर अय्याशियाँ वो पानी पानी हो गईं
शर्म कर तू बेटियाँ तेरी सियानी हो गईं

आज कल तो प्यार का कुछ और ही अंदाज़ है
दास्तानें इश्क़ की जो थीं पुरानी हो गईं

देख कर हैरान हैं सब तितलियों को क्या हुआ
छोड़ कर फूलों को काँटों की दिवानी हो गईं

बादबानों की ज़रूरत ना ख़ुदाओं को कहाँ
किश्तियाँ जितनी भी थीं अब तो दुख़ानी हो गईं

जिनके दम से मुल्क में क़ाइम रहा अम्न-ओ-अमाँ
हस्तियाँ ऐसी तो सारी आँजहानी हो गईं

बच गये ज़हमत से हम तो आ गये वो सामने
"जिनको लिखना था वो सब बातें ज़बानी हो गईं"

आ गईं घर में बहारें उनके आते ही "समर"
दिन शगुफ़्ता हो गये रातें सुहानी हो गईं

______________________________________________________________________________

Gurpreet Singh


वक्त की सरकारें जब जब बहरी कानी हो गईं
तब जुरुरी दोस्तो कलमें उठानी हो गईं ॥

हाथ गाड़ी खींचता देखा है जब से इक बुज़ुर्ग
उँग्लिओं पे चाबियां मुश्किल घुमानी हो गईं ॥

उनके ख़त में उनका चेहरा यूँ नज़र आया कि बस
जिन को लिखना था वो सब बातें जुबानी हो गईं ॥

मैने जो अपनी मुहब्बत को उला में लिख दिया
खुद ब खुद तेरी जफाएं मिसरा सानी हो गईं ॥

अब न देखें चाँद में चेहरा किसी महबूब का
वक्त बीता हसरतें भी कुछ सयानी हो गईं ॥

दौरे फुर्कत में न अश्क इक भी बहाया आँखों ने
रोज़ ए वस्ल अब जाने क्यों ये पानी पानी हो गईं ॥

_________________________________________________________________________________

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'

आजकल उनसे मुलाकातें कहानी हो गईं,
शोखियाँ उनकी अदाएँ अब पुरानी हो गईं।

हम नहीं उनको मना पाये गए जब रूठ वों,
जिंदगी में गलतियाँ कुछ ना-गहानी हो गईं।

प्यार उनका पाने की मन में कई थी हसरतें,
चाहतें लेकिन वो सारी आज पानी हो गईं।

फाग बीता आ गई मधुमास की रंगीं फ़िजा,
टेसुओं की टहनियाँ सब जाफरानी हो गईं।

हुक्मरानों की बढ़ी है ऐसी कुछ चमचागिरी,
हरकतें बचकानी उनकी बुद्धिमानी हो गईं।

थे मवाली जो कभी वे आज नेता हैं बड़े,
देखिए सारी तवायफ़ खानदानी हो गईं।

बोलबाला आज अंग्रेजी का ऐसा देश में,
मातृ भाषाएँ हमारी नौकरानी हो गईं।

थाम के बैठे कलम चलता नहीं क्या माजरा,
*जिनको लिखना था वो सब बातें जबानी हो गईं*।

हाथ रख सर पे सदा आगे बढ़ाते आये जो,
अब 'नमन' रूहें वो फानी आसमानी हो गईं।

___________________________________________________________________________________

शिज्जु "शकूर"


निस्बतें इस दौर में यारो कहानी हो गईं
और बातें भी उसूलों की पुरानी हो गईं

मुफ़लिसी, बदकारियाँ, महँगाई, हिंसा, नफ़रतें
ग़ालिबन अब ये बलाएँ आसमानी हो गईं

दायरा मेरा बहुत छोटा है ये दुनिया बड़ी
मेरी सारी दास्तानें लनतरानी हो गईं


जो तिरंगे में लिपटकर अपने घर लौट आए हैं
उन सभी वीरों की रूहें जाविदानी हो गईं


ख़त पहुँचने में समय लग जाता अच्छा ये हुआ
“जिनको लिखना था वो सब बातें ज़बानी हो गईं”


चाँद गुल बुलबुल ख़त ओ क़ासिद ‘शकूर’
सूरतें ये सब मुहब्बत की पुरानी हो गईं

__________________________________________________________________________________

Tasdiq Ahmed Khan


सिर्फ़ कहने को मुलाक़ातें पुरानी हो गईं |
गम मगर है यह वफ़ाएँ आनी जानी हो गईं |

रौनक़ें महबूब के कूचे कि फानी हो गईं
दौरे उलफत की सभी बातें कहानी हो गईं


आइना उनको दिखाना कितना मँहगा पड़ गया
जो थीं उल्फ़त की निगाहें वो गुमानी हो गईं |


कुछ तो है महबूब की उस माहताबी शक्ल में
यूँ न उनकी सैकड़ों आँखें दिवानी हो गईं |


लग रहा है सोचना होगा हमें अब कुछ नया
जिनको लिखना था वो सब बातें ज़बानी हो गईं |


वो ख़यालों में मेरे हर वक़्त क्या आने लगे
दिन मुनासिब हो गये रातें सुहानी हो गईं |


जो गये दुनिया से उनके अर्ज़ पर हैं तन मगर
उन सभी लोगों की रूहें आसमानी हो गईं |


फ़िक्र खाए जा रही है सिर्फ़ मुफ़लिस को यही
बेटियाँ इक एक करके सब सियानी हो गईं |


हो गई हैं औरतें बे परदा बच्चे बे अदब
लग रहा है ख़त्म रस्में खानदानी हो गईं |


चल रहा है तू अमीरे शह्र जिनकी राह पर
उनकी सरकारें तो इस दुनिया से फानी हो गईं |


वो खड़े क्या हो गये तस्दीक़ गेसू खोल कर
चर्ख पर काली घटायें पानी पानी हो गईं |

_________________________________________________________________________________

Ahmad Hasan


नामवर शख्सीयतें जितनी थीं फानी हो गईं |
हैं जो आवेज़ाँ वो तस्वीरें पुरानी हो गईं |


झील में कूदीं तो कैसी पानी पानी हो गईं |
लो नहाती गोपियाँ भी जल की रानी हो गईं |


शाम देखा तो शगूफे थे अधूरे रंग के
सुबह दम देखा तो कलियाँ अरगवानी हो गईं |


अब तो मोबाइल में इक दफ़्तर सिमट कर आ गया
जिनको लिखना था वो सब बातें ज़ुबानी हो गईं |


देखिए चढ़ते हुए तूफान की ताक़त का ज़ोर
पुर सुकू मौजें थीं सर गर्मे रवानी हो गईं |

इक ज़ुबूर इंजील इक तौरेत इक क़ुरआन इक
बस जो होनी थीं किताबें आसमानी हो गईं |


जग में आईं सीता मरयम शीरीं और लैला मगर

'रफ़्ता रफ़्ता सब ही अहमद आनी जानी हो गईं

__________________________________________________________________________________-

rajesh kumari

इस शजर की कौमी कदरें बे-मआनी हो गईं
डालियाँ कुछ क्यूँ हरी कुछ जाफरानी हो गईं

गीत गाते थे परिंदे एकता के डाल पर
आज तुग़यानी में गायब सब निशानी हो गईं

सरफरोशी थी रवाँ अपने वतन के खून में
आज वो कुर्बानियाँ किस्से कहानी हो गईं

खून आँखों में उतर आया भिचीं फिर मुट्ठियाँ
धीरे धीरे फब्तियाँ जब खानदानी हो गईं

बिन तुम्हारे जिन्दगी की थी फ़सुर्दा क्यारियाँ
आ गये जो तुम मेरी ऋतुएँ सुहानी हो गईं

क्या न जाने कह दिया खुर्शीद ने झुककर उन्हें
उस समंदर की सभी मौजें तुफानी हो गईं

जाने क्या था उस मुसव्विर की सभी तस्वीरों में
तजकिरा एसे हुआ सब जावेदानी हो गईं

मुफलिसी से जूझते खुद देख कर माँ बाप को
जन्म से ही बच्चियाँ उनकी सयानी हो गईं

वक़्त था इक डूबते सूरज को भी करते सलाम
आज वो तहजीब की बातें पुरानी हो गईं

सोचती थी खत लिखूँ पर राह में वो मिल गये
जिनको लिखना था वो सब बातें जबानी हो गईं

__________________________________________________________________________________

नादिर ख़ान


पत्तियां अब तो शजर की ज़ाफरानी हो गईं
मौसमें गुल की वो बातें भी पुरानी हो गईं

हम सुनाते भी अगर तो क्या सुनाते हाल –ए- दिल

दास्तानें प्यार की किस्से-कहानी हो गईं

हम जिन्हें समझे थे फूलों से भी नाज़ुक बच्चियाँ
बोझ कम करने पिता का सब सयानी हो गईं

क्या खिलौना दे दिया तुमने इन्हें बाबा "जुकर"
लड़कियाँ तो फेसबुक की ही दिवानी हो गईं

जब मिली नज़रों से नज़रें दिल में इक दस्तक हुयी
शर्म से आँखें झुकीं फिर पानी पानी हो गईं

क्या बदल जायेगा अब वो लखनवी अंदाज़ भी
क्या वो तहज़ीबें हमारी बस निशानी हो गईं

यूँ न हमको देखिये, ऊँचा न हमसे बोलिए
अब हमारी भी पतंगें आसमानी हो गईं

तुम हिकारत से न देखो इन गरीबों को मियाँ
अब तो इनकी भी उड़ानें आसमानी हो गईं

हो गई आसान कितनी ज़िंदगी की राह अब
जिनको लिखना था वो सब बातें ज़ुबानी हो गईं

_________________________________________________________________________________

Dayaram Methani


वो जवानी की मुलाकातें कहानी हो गईं
दर्द दिल का उम्र भर उनकी निशानी हो गईं


थी जवानी हुस्न भी था आरज़ू भी थी बहुत
ढल गया यौवन तो बातें सब पुरानी हो गईं


कामयाबी के नशे में होश अपना खो बैठे
जिन को लिखना था वो सब बातें ज़बानी हो गईं


जो कभी सोचा नहीं यारों गज़ब ऐसा हुआ
भोली भाली आम जनता अब सयानी हो गईं


कौन ‘‘मेठानी’’ किसी को पूछता है आजकल
हौसलों से जिन्दगी अपनी सुहानी हो गईं

_________________________________________________________________________________

Hemant kumar


थी रवायत जो जमाने की पुरानी हो गईं,
बेटियाँ भी आज कल कितनी सयानी हो गईं।

है असर तालीम का गाँव में भी दिखने लगा,
घर की दहलीजों की बातें सब पुरानी हो गईं।

सरहदों पे तान सीना अब खड़ी हैं बेटियाँ,
वे नही अबला रही काली भवानी हो गईं।

कल तलक तफ़जी़ह करते बेटियों की लोग जो,
आज सारे इल्म उनकी पानी-पानी हो गईं।

हर तरफ उनका ही जल्वा है मुतासिर कर रहा,
बेटियों के पर जो निकले आसमानी हो गईंl

रह गया आ के पुरानी बातें यूँ जेहन में क्यूँ,
जिनको लिखना था सब बातें ज़बानी हो गईं।

_________________________________________________________________________________

Seema mishra

आ गई फूलों की रुत शामें सुहानी हो गईं
स्याह रातें अब महक कर रात रानी हो गईं

तब हवेली के दरो दीवार सब गाने लगे
बेटियाँ जब उस हवेली की सियानी हो गईं.

बेबसी तो है मगर अब कब तलक चर्चा करें
दास्तानें सब ग़मों की अब पुरानी हो गईं

लाख कोशिश कर चुके हैं सलवटें जाती नहीं
जिस्म लगते हैं नए रूहें पुरानी हो गईं

रात भर सोयी नहीं थी कश्मकश पैगाम की
जिनको लिखना था वो सब बातें ज़बानी हो गईं

__________________________________________________________________________________

Anuraag Vashishth

सारी तकलीफें मेरी तेरी मेहरबानी हो गईं
रहमतें मुझ पर बहुत जिल्लेसुभानी हो गईं


चाहतें हैं दिल में जैसे हों किसी बंजर का बीज
ख्वाहिशें जितनी थीं ग़ुरबत की जवानी हो गईं


फोन उनका आ गया और ख़त अधूरा रह गया
"जिनको लिखना था सब बातें ज़बानी हो गईं"


जितने गुंडे थे वो सारे अब विधायक बन गए

जनता की सरकार की बातें पुरानी हो गईं

नाम पर सेवा के सब मालिक बने बैठे यहाँ
लोग भिखमंगे हुए सरकारें दानी हो गईं


पंचतारा होटलों में मंत्रियों की ऐश है
आत्महत्याएं किसानों की निशानी हो गईं

________________________________________________________________________________

मिथिलेश वामनकर

देश की जब योजनायें आसमानी हो गईं
फ़िक्र में सारी उमीदें पानी-पानी हो गईं

लाल फीताशाही ने समझा दिया मजबूर को
आजकल मजबूरियाँ भी चाय-पानी हो गईं

ये सियासत तो मियां सचमुच गज़ब की चीज है
डाकुओं की टोलियाँ भी खानदानी हो गईं

जाने कितने रंगों की बातें हुईं हैं आजकल
लाल, नीली से हरी फिर जाफ़रानी हो गईं

अब तनिक यह एकता समता का नाटक बंद हो
भेदभावी जातियाँ जब संविधानी हो गईं

हम सही करते रहे तो मूर्ख घोषित हो गए
और उनकी गलतियाँ सब बुद्धिमानी हो गईं

ज्ञात होता है पिता को यह सदा ससुराल में
नकचढ़ी वो बेटियाँ कितनी सयानी हो गईं

आज ख़त फिर लिख न पाए फोन उनका आ गया
"जिन को लिखना था वो सब बातें ज़बानी हो गईं "


आज जीवन हो गया है देखिये कितना सरल
"जिन को लिखना था वो सब बातें ज़बानी हो गईं "

गेसुओं से अब ज़रा ‘मिथिलेश’ तू बाहर निकल
आज हुस्नो-जाम की गज़लें पुरानी हो गईं

कम-से-कम अब छोड़ दे ‘मिथिलेश’ पत्थर पूजना
वासनाएँ भी तेरी अब तत्वज्ञानी हो गईं

__________________________________________________________________________________

Manan Kumar singh


जानते भी देखिये बातें अजानी हो गईं
चुप्पियाँ तो आपकी बेढ़ब कहानी हो गईं।1

हो भले कुछ भी सिला परवा कहाँ की आपने
सब मुरादें ही बिखरकर रातरानी हो गईं।2

शोखियों के शौक ने भरमा दिया कुछ इस कदर
आपकी सरगोशियाँ भी बदजुबानी हो गईं।3

जानता है कौन किसकी धड़कनों की आहटें
सूरतें जितनी मुकम्मिल सब लजानी हो गईं।4

सिलसिले मरते गये बेमौत ही संसार में

चाहतें भी आजकल देखा अ-पानी हो गईं।5

सो गई तकदीर लगता जागतीं बदकारियाँ
सूखते हैं खेत पर चुंदरियाँ' धानी हो गईं।6

बेकहे सब कुछ कहा है, कह रहा कबसे 'मनन'
जिनको लिखना था वो सब बातें ज़बानी हो गईं।7

_________________________________________________________________________________

Dr Ashutosh Mishra


जिन्दगी कितनी ही जाने इक कहानी हो गयीं
ताज बदले तो कई बातें पुरानी हो गयीं
.
इक नए सूरज के आते ही क्षितिज पर यूं लगा
चारसू जैसे फिजाये ही सुहानी हो गयीं
.
अब कलम कागज की उनको है जरूरत ही कहाँ
जिन को लिखना था वो सब बातें जुवानी हो गयीं
.
कृष्ण के भीतर कही कुछ बात निश्चित खास थी
यूं नहीं सब गोपियाँ उसकी दीवानी हो गयीं
.
उजड़े ये घर, टूटी सडकें गन्दगी चारों तरफ
मुल्क की पहचान क्या ये ही निशानी हो गयीं
.
देखकर इस धूप को आँगन में पहली बार यूं
कोपलें मेरे चमन की जाफरानी हो गयीं
.
ये हकीकत की जमी उम्मीद से ज्यादा थीं सख्त
हौसलों से ख्वाहिशे पर आसमानी हो गयीं

__________________________________________________________________________________

Naveen Mani Tripathi

चाँद के आने से कुछ रातें सुहानी हो गईं ।
महफ़िलें बीते दिनों की अब कहानी हो गईं।।

हसरतों का क्या भरोसा बह गईं सब हसरतें ।
वो छलकती आँख में दरिया का पानी हो गईं ।।

हुस्न के इजहार का बेहतर सलीका था जिन्हें ।
देखते ही देखते वो राजरानी हो गईं।।

खत में क्या लिक्खूँ यही बस सोचता ही रह गया।
जिन को लिखना था वो सब बातें ज़बानी हो गईं ।।

मिल गया तरज़ीह शायद फिर तुम्हारे हाल पर ।
अब तेरी पैनी अदाएं भी गुमानी हो गईं ।।

कुछ तवायफ़ के घरों में हो रही चर्चा गरम ।
है बड़ा मसला के अब वो खानदानी हो गईं।।

मानता हूँ मुफ़लिसी में था नहीं रूमाल तक ।
बस झुकी नज़रों की वो यादें निशानी हो गईं ।।

दफ़्न कर दो ख्वाहिशें ये दौलतों का दौर है ।
इश्क़ बिकता ही नहीं बातें पुरानी हो गईं।।

आजमाइस में वो आती हैं यहां चारा तलक ।
मछलियो को देखिये कितनी सयानी हो गईं ।।

_______________________________________________________________________________

munish tanha

आप हमसे थे मिले यादें निशानी हो गईं
प्यार की वो देख बातें अब कहानी हो गईं

सोच कर घर से निकलना आज से मेरे सनम
अब अदाएं आपकी भी जाफरानी हो गईं

खिल रही थी बाग में कलियाँ अचानक क्या हुआ
इक झलक देखी तुम्हारी और पानी हो गईं


दर्द कितना है मिला हमको तुम्हारी याद से
जख्म लगते जिंदगी आहें जवानी हो गईं

देख सखियों संग राधा मुस्कुराते हैं हरी
पास मोहन सोच के सारी दीवानी हो गईं

क्या लिखूं खत में तुम्हें मैं सोच कर दिल डूबता
जिन को लिखना था वो सब बातें जबानी हो गईं

_______________________________________________________________________________

सतविन्द्र कुमार


बोलियाँ सबकी नशे की अब जिदानी हो गईं
प्यार से मिलने की बातें सब पुरानी हो गईं

बाग़ पे भौरों का कब्जा यार जबसे हो गया
मुश्किलों में तितलियों की जिंदगानी हो गईं

रू ब रू आए वो जब कागज कलम सब खो गए
*जिन को लिखना था वो सब बातें जबानी हो गईं*

अब तकावी से जलालत की महक आने लगी
साँसों पे पड़ती यें भारी मेहरबानी हो गईं

रोमियों पिटने लगे हैं हर गली चौराहे पे
हरकतें औ बंद सारी छेड़खानी हो गईं

__________________________________________________________________________________

Mahendra Kumar

धूप से यादें तुम्हारी आसमानी हो गईं
और समां दिलकश, हवाएँ जाफ़रानी हो गईं

बाद मुद्दत देख कर इस शहर में फिर आपको
बर्फ़ सी आँखें हमारी आज पानी हो गईं

इक मुसव्विर ने छुआ तो बन गया पत्थर ख़ुदा
इश्क़ से मिलकर वफ़ाएँ जाविदानी हो गईं

देखते ही ख़ुद-ब-ख़ुद आँखों ने कलमा पढ़ दिया
"जिन को लिखना था वो सब बातें ज़बानी हो गईं"

वो सदाएँ आयी थीं जो पर्वतों से लौटकर
कुछ ग़ज़ल में ढल गईं और कुछ कहानी हो गईं

मर गईं ख़ुशियाँ हमारी रेज़ा रेज़ा टूट कर
थोड़ी उम्मीदें बची थीं वो भी फ़ानी हों गईं

ज़िन्दगी तुम रंग चाहे जो कोई भी ढूँढ लो
सारी तस्वीरें तुम्हारी अब पुरानी हो गईं

________________________________________________________________________________

अजीत शर्मा 'आकाश'

रंज की, अफ़सोस की बातें पुरानी हो गयीं ।
फिर से घड़ियाँ ज़िन्दगानी की सुहानी हो गयीं ।

फिर चमन में लौट आया है बहारों का समां
फिर से ताज़ा दिल में वो यादें पुरानी हो गयीं ।

क़िस्से रंजीदा भुला डाले हैं हमने तो सभी
आप भी अब छोड़िए, बातें पुरानी हो गयीं ।

क्या बतायें किस तरह बरसी ये आँखें रात-दिन
देखकर काली घटाएँ पानी-पानी हो गयीं ।

ज़ालिमों ने बन्द कर दी सारे सूबे में शराब
किस क़दर मुश्किल हमें शामें बितानी हो गयीं ।

अब क़लम का़ग़ज की हमको हो ज़रूरत क्यों भला
जिन को लिखना था वो सब बातें ज़बानी हो गईं

__________________________________________________________________________________-

वह ग़ज़लें जिनमे रदीफ़ अधिकतर शेरों में गलत ले लिया गया था, जिनमे गिरह का शेर नहीं था अथवा जिन गजलों में मतला नहीं था उन्हें संकलन में स्थान नहीं दिया गया है| इसके अतिरिक्त किसी शायर की ग़ज़ल छूट गई हो अथवा मिसरों को चिन्हित करने में कोई त्रुटि हुई तो अविलम्ब सूचित करें|

Views: 3451

Reply to This

Replies to This Discussion

वांछित सुधार कर दिया है|

आदरणीय राणा प्रतापजी संकलन की इतनी त्वरित प्रस्तुति के लिए बधाई।
आदरणीय 2 शेरों के लिए मन में शंका है।
"आजकल उनसे मुलाकातें कहानी हो गईं,"
उपरोक्त पंक्ति हरे रंग से चिन्हित है कृपया गलती बताएँ में समझ नहीं पा रहा हूँ।
रूठ के जब वो गये उनको मना हम ना सके,
उपरोक्त पंक्ति बेबहर हो रही है मेरी समझ में नहीं आ रहा। कृपया बताएं मेरा मार्गदर्शन हो सकेगा।
बाकी शेरों की गलतियों के बारे में समर साहब ने बता दिया है। आपका इशारा मिलने से मैं सुधार के लिए निवेदन कर दूँगा।

आदरणीय बासुदेव अग्रवाल जी मतले का मिसरा चिन्हित करने में त्रुटि हुई उसके लिए क्षमा कीजिये इसे वापस काले रंग में कर दिया है 

 दूसरा मिसरा 'न' को 'ना' की तरह इस्तमाल करने के कारण बे बहर हो रहा है|

धन्यवाद 

हार्दिक शुभकामनाएं|

आ0राणा प्रताप जी आपका बहुत आभार। इतनी बारीक बातों की जानकारी यहाँ ही सम्भव है और यह मेरा अहोभाग्य है कि मैं यहाँ सक्रिय हूँ। मैं सुधार के बाद पूरी ग़ज़ल यहाँ भेज रहा हूँ कारण की कई असआर में तब्दीलियाँ हैं।

आजकल उनसे मुलाकातें कहानी हो गईं,
शोखियाँ उनकी अदाएँ अब पुरानी हो गईं।

हम नहीं उनको मना पाये गए जब रूठ वों,
जिंदगी में गलतियाँ कुछ ना-गहानी हो गईं।

प्यार उनका पाने की मन में कई थी हसरतें,
चाहतें लेकिन वो सारी आज पानी हो गईं।

फाग बीता आ गई मधुमास की रंगीं फ़िजा,
टेसुओं की टहनियाँ सब जाफरानी हो गईं।

हुक्मरानों की बढ़ी है ऐसी कुछ चमचागिरी,
हरकतें बचकानी उनकी बुद्धिमानी हो गईं।

थे मवाली जो कभी वे आज नेता हैं बड़े,
देखिए सारी तवायफ़ खानदानी हो गईं।

बोलबाला आज अंग्रेजी का ऐसा देश में,
मातृ भाषाएँ हमारी नौकरानी हो गईं।

थाम के बैठे कलम चलता नहीं क्या माजरा,
*जिनको लिखना था वो सब बातें जबानी हो गईं*।

हाथ रख सर पे सदा आगे बढ़ाते आये जो,
अब 'नमन' रूहें वो फानी आसमानी हो गईं।

======
विशेष:-
ग़ज़ल में सम्मिलित शेर की जगह गिरह का यह शेर भी ले सकते हैं।
कौन लिखता आजकल मोबायलों के दौर में,
जिनको लिखना था वो सब बातें जबानी हो गईं।

आदरणीय वासुदेव अग्रवाल जी आपकी संशोधित ग़ज़ल प्रतिस्थापित कर दी गई है|

मुहतरम जनाब राणा साहिब , ओ बी ओ लाइब तरही मुशायरा अंक -81 के त्वरित संकलन और
कामयाब संचालन के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ ----
मेरी ग़ज़ल के हुसने मतला की जगह निम्न लिखित मतला लिखने की ज़हमत कीजिए
''रौनक़ें महबूब के कूचे कि फानी हो गईं ''
''दौरे उलफत की सभी बातें कहानी हो गईं ''
सादर

आदरणीय तस्दीक साहब आपके द्वारा वंचित सुधार कर दिया गया है|

एक अरसे बाद संकलन देख कर बहुत अच्छा लगा ..
आयोजन के लिये बधाई 

जनाब राणा प्रताप सिंह जी आदाब,एक अर्से बाद तरही मुशायरे का संकलन देख कर ख़ुशी हुई,इसके लिये दिली मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
एक गुज़ारिश है कि तरही मुशायरे का मिसरा अगर 5 या 6 तारीख़ तक दे दिया जाये तो नये लिखने वालों के लिये आसानी होगी,उम्मीद है इस गुज़ारिश पर ग़ौर फरमाएंगे ।

आदरणीय समर साहब प्रयास तो यही रहता है कि मुशायरे की पोस्ट महीने की 5 तारीख के पहले लग जाय परन्तु कई बार किन्ही अपरिहार्य कारणों से विलम्ब हो जाता है, भविष्य में कोशिश रहेगी कि मुशाया सही समय पर घोषित हो सके|

शुक्रिया जनाब ।

आदरणीय राणा प्रताप जी , ओ बी ओ लाइब तरही मुशायरा अंक --81के त्वरित संकलन
तथा सफल संचालन हेतु बधाई स्वीकार करें ---मेरी ग़ज़ल के मक़ते के सानी मिसरा संशोधित
करने की क्रपा करें ---
''रफ़्ता रफ़्ता सब ही अहमद आनी जानी हो गईं ''

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"आदरणीय रामबली जी बहुत ही उत्तम और सार्थक कुंडलिया का सृजन हुआ है ।हार्दिक बधाई सर"
1 hour ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
" जी ! सही कहा है आपने. सादर प्रणाम. "
14 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, एक ही छंद में चित्र उभर कर शाब्दिक हुआ है। शिल्प और भाव का सुंदर संयोजन हुआ है।…"
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत…"
15 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"अवश्य, आदरणीय अशोक भाई साहब।  31 वर्णों की व्यवस्था और पदांत का लघु-गुरू होना मनहरण की…"
16 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी सादर, आपने रचना संशोधित कर पुनः पोस्ट की है, किन्तु आपने घनाक्षरी की…"
17 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी   नन्हें-नन्हें बच्चों के न हाथों में किताब और, पीठ पर शाला वाले, झोले का न भार…"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति व स्नेहाशीष के लिए आभार। जल्दबाजी में त्रुटिपूर्ण…"
18 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में सारस्वत सहभागिता के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी। शीत ऋतु की सुंदर…"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"शीत लहर ही चहुँदिश दिखती, है हुई तपन अतीत यहाँ।यौवन  जैसी  ठिठुरन  लेकर, आन …"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी सदस्यों से रचना-प्रस्तुति की अपेक्षा है.. "
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service