परम आत्मीय स्वजन,
"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के ३० वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है|इस बार का तरही मिसरा मुशायरों के मशहूर शायर जनाब अज्म शाकिरी साहब की एक बहुत ही ख़ूबसूरत गज़ल से लिया गया है| तो लीजिए पेश है मिसरा-ए-तरह .....
"रात अंगारों के बिस्तर पे बसर करती है "
२१२२ ११२२ ११२२ २२
फाइलातुन फइलातुन फइलातुन फेलुन
अति आवश्यक सूचना :-
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
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बहुत खूब नायाब साहिब
सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकारें
धन्यवाद् वीनस केसरी ji
नायाब भाई, आपकी प्रस्तुति और प्रतिभागिता के लिए हार्दिक बधाई व धन्यवाद.
कट गयी मेरी ज़ुबां दिल है अभी सीने में
है क़लम हाथ में कुछ बात मगर करती है
बहुत खूब वाह..
मर्म को छूती हुई नायाब और शानदार गज़ल.
बेटे लन्दन में हैं पेरिस में हैं बेचारी माँ
जिंदगी फूस के छप्पर में बसर करती है..."नायाब"
कट गयी मेरी ज़ुबां दिल है अभी सीने में
है क़लम हाथ में कुछ बात मगर करती है.."नायाब"
फ़ैल जाती है फ़जाओं में बहार सू "नायाब"
बात घर कोई परवाज़ अगर करती है............."नायाब"
बेटे लन्दन में हैं पेरिस में हैं बेचारी माँ
जिंदगी फूस के छप्पर में बसर करती है वाह वाह वाह वाह
माँ की ममता भी ज़माने में निराली ठहरी
प्यार बच्चो को बहुत शाम-ओ-सहर करती है आँख भर आई दोस्त वाह
एक मजलूम की वो आह सुनी है जबसे
दर्द बनती है मेरे दिल पे असर करती है क्या बात है
कट गयी मेरी ज़ुबां दिल है अभी सीने में
है क़लम हाथ में कुछ बात मगर करती है बहुत खूब
सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई
बेहद उम्दा गिरह ..नायाब साहब ...मुझे मतले में कोई वर्ड मिसिंग लग रहा है..बहरहाल खूबसूरत अशआर के लिए दाद कबूलिये|
जब भी तेरी समत सफ़र करती है
राह मुश्किल है मगर राह गुज़र करती है ....ऊला मिसरा छोटा पड रहा है नज़रे सानी फरमा लें...शायद कोई शब्द छूट गया है
बेटे लन्दन में हैं पेरिस में हैं बेचारी माँ
जिंदगी फूस के छप्पर में बसर करती है ....अच्छी कहन लेकिन दोनों मिसरोन में रब्त कायम नहीं हो प रहा है...शायद बेचारी से पहले कमा की जरूरत है ...
माँ की ममता भी ज़माने में निराली ठहरी
प्यार बच्चो को बहुत शाम-ओ-सहर करती है ...वाह बेशक सच बात है॥बधाई हो
एक मजलूम की वो आह सुनी है जबसे
दर्द बनती है मेरे दिल पे असर करती है ....इसमें भी सानी मिसरे को और स्पष्ट करने की जरूरत है...अच्छा है
जिंदगी हिजर के मौसम में न पूछो यारों...
रात अंगारों के बिस्तर पे बसर करती है....."हिज्र"......वाह भाई वाह क्या खूब गिरह लगाई है...बहुत अच्छे से चिपकी है...बहुत बहुत दाद कुबूल करें
कट गयी मेरी ज़ुबां दिल है अभी सीने में
है क़लम हाथ में कुछ बात मगर करती है ॥बेहद खूबसूरत खयाल॥बधाई हो
फ़ैल जाती है फ़जाओं में बहार सू "नायाब"
बात घर कोई परवाज़ अगर करती है...मकते में भी सानी खटक रहा है॥एक बार देख लें॥
नायाब भाई मुझे नहीं लगता की ये ग़ज़ल आपके स्तर की है॥जो मेयार आपने इस मंच पे हासिल किया है वह बहुत ऊंचा है...लगता है इस बार कुछ जल्दी में थे....फिर भी आपको दिली दाद हाजिर है..कोई बात अगर गलत कह गया हूँ तो मुवाफ़ करिएगा॥
जल्दबाजी की वजह से मेरी ग़ज़ल में कुछ लफ्ज़ छुट गए थे एडमिन जी से गुज़ारिश है की उन लफ्जों को मैंने बोल्ड कर दिया है .. कृपया उन शब्दों को परिवर्तित कर दें ... धन्यवाद्
जिंदगी जब भी तेरी समत सफ़र करती है
राह मुश्किल है मगर राह गुज़र करती है
बेटे लन्दन में हैं पेरिस में हैं, बेचारी माँ
जिंदगी फूस के छप्पर में बसर करती है
माँ की ममता भी ज़माने में निराली ठहरी
प्यार बच्चो को बहुत शाम-ओ-सहर करती है
एक मजलूम की वो आह सुनी है जबसे
दर्द बनती है मेरे दिल पे असर करती है
जिंदगी हिज्र के मौसम में न पूछो यारों
रात अंगारों के बिस्तर पे बसर करती है
कट गयी मेरी ज़ुबां दिल है अभी सीने में
है क़लम हाथ में कुछ बात मगर करती है
फ़ैल जाती है फ़जाओं में बहार सू "नायाब"
बात घर से कोई परवाज़ अगर करती है
बहुत खूब नायाब ..बेहेतरिन
अच्छी ग़ज़ल कही है जनाब, बधाई कुबूल करें |
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