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आदरणीय काव्य-रसिको,

सादर अभिवादन !

 

’चित्र से काव्य तक छन्दोत्सव का यह आयोजन लगातार क्रम में इस बार निनान्यबेवाँ आयोजन है.   

 

आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ  

20 जुलाई 2019 दिन शनिवार से 21 जुलाई 2019 दिन रविवार तक
 
इस बार के छंद हैं - 

सार छंद 

ताटंक छंद  

हम आयोजन के अंतरगत शास्त्रीय छन्दों के शुद्ध रूप तथा इनपर आधारित गीत तथा नवगीत जैसे प्रयोगों को भी मान दे रहे हैं. छन्दों को आधार बनाते हुए प्रदत्त चित्र पर आधारित छन्द-रचना तो करनी ही है, दिये गये चित्र को आधार बनाते हुए छंद आधारित नवगीत या गीत या अन्य गेय (मात्रिक) रचनायें भी प्रस्तुत की जा सकती हैं.

साथ ही, रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है.    

केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जायेंगे 

सार छंद के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक करें

ताटंक छंद के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक करें

जैसा कि विदित है, अन्यान्य छन्दों के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के  भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती है.

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आयोजन सम्बन्धी नोट 

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 

20 जुलाई 2019 दिन शनिवार से 21 जुलाई 2019 दिन रविवार तक, यानी दो दिनों के लिए, रचना-प्रस्तुति तथा टिप्पणियों के लिए खुला रहेगा.

 

अति आवश्यक सूचना :

  1. रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
  2. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
  3. सदस्यगण संशोधन हेतु अनुरोध  करेंआयोजन की रचनाओं के संकलन के प्रकाशन के पोस्ट पर प्राप्त सुझावों के अनुसार संशोधन किया जायेगा.
  4. अपने पोस्ट या अपनी टिप्पणी को सदस्य स्वयं ही किसी हालत में डिलिट न करें। 
  5. आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति संवेदनशीलता आपेक्षित है.
  6. इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
  7. रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से रोमन फाण्ट का उपयोग  करें. रोमन फ़ॉण्ट में टिप्पणियाँ करना एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.
  8. रचनाओं को लेफ़्ट अलाइंड रखते हुए नॉन-बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें. अन्यथा आगे संकलन के क्रम में संग्रहकर्ता को बहुत ही दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

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"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ

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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

आदरणीया प्रतिभाजी

आपके इस छंद गीत ने मन मोह लिया। मुझे लगता है कि इसे पढ़ने के बाद सभी प्रकृति प्रेमी कुछ पुरानी यादों में खो जायेंगे।

हृदयतल से बधाई इस सुंदर प्रस्तुति के लिए।

आपको गीत प्रभावित कर सका लेखन सफल हुआ। उत्साहवर्धन के लिये हार्दिक आभार आदरणीयअखिलेश जी

आदरणीया प्रतिभा जी प्रदत्त  चित्र पर ताटंक  छंद आधारित गीत की उत्तम व सार्थक अभिव्यक्ति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें 

गीत के भाव मन को छु गए 

इस सार्थक गीत के प्रस्तुति हेतु ढेरों बधाई 

उत्साहवर्धन करती इस प्रतिक्रिया के लिये हार्दिक आभार आदरणीय सत्यनारायण सिंह जी

आदरणीया प्रतिभा जी, संप्रति अतुकांत से चलने वाले छंदोत्सव आयोजन को आपने जिस भावमय, ऊँची रचना से समृद्ध किया है वह आपके निरंतर, एकाकी अभ्यास-प्रक्रिया का परिचायक है. इस रचना के लिए हृदयतल से बधाइयाँ. 

सादर 

रचना आपको प्रभावित कर सकी लेखन सफल हुआ। इस प्रशंसा और उत्साहवर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी

गुलमोहर सी  प्यारी यादें , और उन्हें संजोता प्यारा सा गीत 

चाह्दी के डोरों के ताने ....आय हाय ...मन मुग्ध हो गया 

बहुत बहुत बधाई स्वीकारें प्रतिभा जी 

सस्नेह 

रचना पर आपकी उपस्थिति और उत्साहवर्धन करती स्नेहिल टिप्पणी के लिये हार्दिक आभार प्रिय प्राची जी

यादों में तुम आते हो मन

गुलमोहर हो जाता है...........वाह ! वाह ! बहुत सुंदर.

आदरणीया प्रतिभा पांडे जी सादर, प्रदत्त चित्र पर बहुत सुंदर भावपूर्ण गीत आपने रचा है. हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर. 

हार्दिक आभार आदरणीय अशोक जी

सार छंद

 

आहट पाकर सावन की फिर , झूमे डाली-डाली ।

हर्षित हैं सब बाग़-बगीचे, छायी है हरियाली ।।

मोर पपीहा बोल रहे हैं, गूँज रहा है कानन ।

टर्र-टर्र कर दादुर बोलें, हरा हो गया उपवन ।।

 

गुलमोहर ने रंग बिखेरे, झूमे अम्बर प्यारा ।

वर्षा ऋतु ने जान फूँक दी, बह निकली जल धारा ।।

सरिताएं सब कल-कल बहतीं, देखे खड़ा किनारा ।

शीतलता ले आया मौसम, नीचे आया पारा ।।

 

फागुन को भूला है यह मन , सावन में खोया है ।

कृषकों ने भी नम खेतों में, बीज नया बोया है ।।

पनघट पर फिर धूम मची है,  गोरी गीत सुनाए ।

छाता लेकर निकले जन-जन, घर में रहा न जाए ।।

 

~ मौलिक/अप्रकाशित.

तीनों छंदों में सावन के, मोहक  चित्र उकेरे

भाते हैं हर जन को भाई, रंग यहाँ बहुतेरे।

हार्दइक बधाई आदरणीय अशोक जी

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