111 members
217 members
393 members
555 members
1 2 2 2 1 2 2 2
नया नग्मा कोई गाओ
पुराने ग़म चले आओ
तुम्हें उड़ना सिखा दूँगा
मिरे पिंजड़े में आ जाओ
अकेलापन अगर अखड़े
उदासी को बुला लाओ
अरे भँवरे, अरी चिड़िया
ग़ज़ल कोई सुना जाओ
शजर बोला परिंदे से
मुहाजिर लौट भी आओ
हमारा दिल तुम्हारा घर
कभी आओ, कभी जाओ
मौलिक और अप्रकाशित
...दीपक कुमार
Posted on January 17, 2017 at 1:37pm — 9 Comments
2 1 2 2 1 2 1 2 2 2/1 1 2 /2 2 1/1 1 2 1
दिल ने धड़कन उधार ले ली है
कितनी मोटी पगार ले ली है
ख़ूबसूरत लगी तो हमने भी
इक उदासी उधार ले ली है
फिर हवाओं से एक ताइर ने
दुश्मनी बार-बार ले ली है
हमने सुनसान राह में यादों की
इक रिदा ख़ुशगवार ले ली है
हँस-हँसा कर ज़रा संवर जाओ
आँसुओं से निखार ले ली है
मौलिक और अप्रकाशित
...दीपक कुमार
Posted on January 16, 2017 at 3:00pm — 5 Comments
फाइलातुन मुफाइलुन फेलुन/फइलुन
पिछली यादों में लौट आए हैं
हम बहारों में लौट आए हैं
जाग जाओ उदास ताबीरों
ख़्वाब आँखों में लौट आए हैं
हम मिले भी यहीं, यहीं बिछड़े
किन ख़यालों में लौट आए हैं
चेहरे पे नूर लौट आएगा
अश्क आँखों में लौट आए हैं
जो मकानों से जा चुके थे मकीं
वो मकानों में लौट आए हैं
मौलिक और अप्रकाशित
...दीपक कुमार
Posted on January 6, 2017 at 10:30am — 10 Comments
उदास रात के साये में ख़्वाब पहने हुए
निकल पड़ा है मुसाफ़िर अज़ाब पहने हुए
डरा सकेगी नहीं जुगनुओं को तारीकी
निकल पड़े हैं वो तो आफ़ताब पहने हुए
नज़र-नज़र से मिली और खा गये धोक़ा
वो दिलफ़रेब मिली थी नक़ाब पहने हुए
यहाँ उदास मैं भी हूँ, वहाँ उदास वो भी है
बहार भी है ख़िज़ां के गुलाब पहने हुए
लो आ गया मिरा महबूब फिर ख़्यालों में
''सितारे ओढ़े हुए माहताब पहने हुए''
मौलिक व…
ContinuePosted on November 12, 2016 at 9:30am — 4 Comments
सूद पहले फिर असल दो
इक मुहब्बत की ग़ज़ल दो
जो परिन्दे छत पे आयें
उनको दाने और जल दो
शक्ल वैसी ही रहेगी
आईना चाहे बदल दो
धर्मशाला है ये दुनिया
रात काटो और चल दो
ये बदन कल तक नया था
अब पुराना है बदल दो
तुम सवेरे-शाम आओ
मेरे जीवन में खलल दो
......दीपक कुमार
Posted on January 10, 2012 at 7:13pm — 14 Comments
सामान उठाते हैं
अब लौट के जाते हैं
दिल मेरा दुखाने को
अहबाब भी आते हैं
ये चाँद-सितारे भी
रातों को रुलाते हैं
जो टूट के मिलते थे
वो रूठ के जाते हैं
मैं उनका निशाना हूँ
वो तीर चलाते हैं
हम अपनी उदासी को
हँस-हँस के छुपाते हैं
की ख़ूब अदाकारी
पर्दा भी गिराते हैं
.......दीपक कुमार
Posted on January 10, 2012 at 12:25am — 10 Comments
और ये मेरा सौभाग्य है !
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
Switch to the Mobile Optimized View
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |