2122 1212 22
जबसे मुझसे बिछड़ गया है वो
सबमें मुझको ही ढूढ़ता है वो
मैंने मांगा था उससे हक़ अपना
बस इसी बात पर खफ़ा है वो
मेरी तदवीर को किनारे रख
मेरी तक़दीर लिख रहा है वो
पत्थरों के शहर में जिंदा है
लोग कहते हैं आइना है वो
उसकी वो ख़ामोशी बताती है
मेरे दुश्मन से जा मिला है वो
संजू शब्दिता
मौलिक व अप्रकाशित
Posted on September 25, 2014 at 5:00pm — 26 Comments
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
ज़रा सी बात पर अनबन, भरोसे टूट जाते हैं
कि साथी सात जन्मों के पलों में छूट जाते हैं
ये दिल का मामला प्यारे नहीं दरकार पत्थर की
ज़रा सी बेरुखी से ही ये शीशे फूट जाते हैं
ये ऐसा दौर है साहिब कि आँखें खोल हम सोये
मगर हद है लुटेरे सामने ही लूट जाते हैं
ये माना बेखुदी में हो मगर कुछ होश भी रखना
बहुत जल्दी ही ख्वाबों के घरौंदे टूट जाते हैं
खुदी में दम…
ContinuePosted on July 6, 2014 at 9:26pm — 30 Comments
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
हमें माझी की आदत है उसी के ही सहारे हैं
डुबो दे बीच में चाहे, वो चाहे तो किनारे हैं
मिटाने को हमें अब जा मिला घड़ियाल से माझी
कि साज़िश के निशाने पर ही हमने दिन गुजारे हैं
चमकती चीज ही मिलती रही सौगात में हमको
समझ बैठे ये धोखे से कि किस्मत में सितारे हैं
सियासत जो हमारे घर में ही होने लगी है अब
तभी हर बात में कहने लगे वो हम तुम्हारे हैं
अदावत घर में ही…
ContinuePosted on June 18, 2014 at 11:30pm — 34 Comments
१२१२ ११२२ १२१२ ११२
हमारी बात उन्हें इतनी नागवार लगी
गुलों की बात छिड़ी और उनको खार लगी
बहुत संभाल के हमने रखे थे पाँव मगर
जहां थे जख्म वहीं चोट बार-बार लगी
कदम कदम पे हिदायत मिली सफर में हमें
कदम कदम पे हमें ज़िंदगी उधार लगी
नहीं थी कद्र कभी मेरी हसरतों की उसे
ये और बात कि अब वो भी बेकरार लगी
मदद का हाथ नहीं एक भी उठा था मगर
अजीब दौर कि बस भीड़ बेशुमार…
ContinuePosted on May 28, 2014 at 7:14pm — 58 Comments
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swagat hai aapka Sanju ji...........
सदस्य टीम प्रबंधनSaurabh Pandey said…
आदरणीया, आप तरही मुशायरे की प्रतिक्रियाओं का ज़वाब उसी मुशायरे में दिया करें.. यह उचित होगा.
सादर
आदरणीया आपका आभार कि आपने मुझे मित्रता योग्य समझा।