प्रेम एक रोग हैं गर,
तो हाँ बीमार हूँ मैं,
चाहत बस मुझे तेरी
तेरा ही तलबगार हूँ मैं ll
पूजेंगे तुम्हे अब हम ,
तेरे आगे सर झुकायेंगे,
हैं गर ये खता यारो,
तो हाँ गुनाहगार हूँ मैं ll
तुझे जो हो न यकीं,
दिल में झांक ले कभी,
तेरे ही ख्वाब पलते हैं,
तेरा ही वफादार हूँ मैं ll
चाँद, तारे बहुत दूर तुमसे,
नजर जब भी उठाओगे,
हर सू मुझे ही पाओगे..
हाँ तेरा ही दरों-दिवार हूँ…
ContinuePosted on January 22, 2013 at 11:49pm — 5 Comments
तुमको जब मैं संग न पाऊँ
व्याकुल मन कैसे समझाऊँ
बेकल हो यह सोच रहा कैसे
तुझसे तुझको मैं चुराऊँ
मृदु भावों से कलम भरी है
प्रीत भरी मन की नगरी है
धन वैभव प्रिय पास न मेरे
शब्द बना मोती बरसाऊँ
मिलो जो तुम तो खो जाऊं मैं
जुदा स्वयं से हो जाऊँ मैं
स्वप्न अगर ये स्वप्न ही सही
स्वप्न सत्य सा लखता जाऊँ
आठों पहर साथ हो तेरा
जीवन का हर सांझ सवेरा
नाम तेरे कर दूँ, सौरभ बन
श्वांस में तेरी मैं घुल जाऊँ…
Posted on December 7, 2012 at 11:00pm — 4 Comments
-नसीब-
कहते हैं,नसीब से जो होता है,वो बहुत अच्छा होता है,
नसीब से ही मिलना और नसीब से ही कोई जुदा होता है,
बिछड जाते है अपने दिल के टुकड़े भी कभी-कभी..
देता है खुदा वही जो हमारे लिये अच्छा होता हैं ll
नसीब के भरोसे न कभी हाथ पे हाथ धर बैठना यारो,
न होना परेशां जो न मिल पाये मेहनत का फल यारो,
इंसान की मेहनत के आगे दुनिया का सर भी झुका होता…
Posted on May 4, 2012 at 10:00am — 9 Comments
कौन हूँ मैं...
_______
आज फिर से वो ही ख्याल आया हैं,
आत्मा से उभर के एक सवाल आया हैं,
कि मैं कौन हूँ...??
कौन हूँ मैं... ?
हैं रंगमंच जो दुनिया ये,
क्यूँ अपने किरदार को भूल रहा,
जीना था औरो की खातिर,
क्यूँ अपने दुखों में झूल रहा,
क्यूँ मुझमें हैं अनबुझी प्यास,
क्यूँ खुशियों को मैं ढूँढ रहा,
अनभिज्ञ हूँ…
Posted on April 24, 2012 at 9:00pm — 10 Comments
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Comment Wall (2 comments)
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सदस्य कार्यकारिणीमिथिलेश वामनकर said…
ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्म दिन की हार्दिक शुभकामनायें!
SWAGAT HAI AAPKA.