For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Tasdiq Ahmed Khan's Blog – January 2016 Archive (4)

ग़ज़ल ( पत्थर निकला)

ग़ज़ल (पत्थर निकला ) -------------------------

- 2122 ---1122 ---1122 --22

मेरि बर्बाद मुहब्बत का  ये   मंज़र    निकला  /

 जिसको उल्फत का ख़ुदा समझा वो पत्थर निकला /

दिल को तस्कीन तो हासिल हुई हमदर्दी   से

पर निगाहों  से नहीं  ग़म का समुन्दर  निकला /

ज़ुल्म ने जब भी ज़माने में उठाया है सर

लेके ख़ुद्दार क़लम अपना सुख़नवर   निकला /

नीम शब मिलने की तदबीर भी बेकार गयी

सुबह होते ही गली कूचे में महशर  निकला…

Continue

Added by Tasdiq Ahmed Khan on January 31, 2016 at 12:56pm — 21 Comments

मोहब्बत का रंग

रंगों की दुनिया में असुरक्षा का माहौल बनता देख लाल ,पीले और नीले रंग के मंत्रियों ने सफ़ेद रंग के सरदार से आपात मीटिंग बुलाने को कहा /हर तरह के रंगों को आमंत्रित किया गया /.... मीटिंग शुरू हुई --मुद्दा था ऐसा क्या करें कि हर वर्ग हमें प्यार से देखे /..... लाल और पीले रंग बोल उठे ,हमारे रंग को हिन्दुओं ने पसंद कर लिया ,मुसलमान हमारी तरफ अजीब नज़रों से देखते हैं /.... नीले और पीले एक साथ  कहने लगे हम दोनों से बने हरे रंग को मुसलमानों ने अपना लिया , हिन्दू हमें नफरत की नज़र से देखते हैं /.....…

Continue

Added by Tasdiq Ahmed Khan on January 31, 2016 at 10:00am — 7 Comments

ग़ज़ल

2122 ----2122 -----2122 ----212

आप की गलियों के कुछ मंज़र हमें अच्छे लगे 

ठोकरें खाते हुए पत्थर हमें   अच्छे लगे 

सुनके हर्फ़े आरज़ू माथे पे शिकनें पड़ गयीं

हुस्न के बिगड़े हुए तेवर हमें अच्छे लगे 

इस तरफ आहो फ़ुग़ाँ और उस तरफ रंगीनियाँ

अहलेज़र से मुफ़लिसों के घर हमें अच्छे लगे 

नर्म गद्दों के बजाये सो गए इक टाट पर

फ़ाक़ाकश मज़दूर के बिस्तर हमें अच्छे लगे 

वक़्ते रुख़सत ग़म के मारे आगये जो आँख…

Continue

Added by Tasdiq Ahmed Khan on January 10, 2016 at 7:00pm — 17 Comments

ग़ज़ल

122    122    122    12

हमें मत भुलाना नये साल में

मुहब्बत निभाना नये साल में 

ख़ुदा  से दुआ आप मांगें यही

बढ़े दोस्ताना नये  साल में 

सुख़नवर फ़क़त तू हि  बेहतरनहीं

न यह भूल जाना नये साल में 

तुम्हारी ख़ुशी में ख़ुशी है मेरी

न आंसू बहाना  नए साल में 

खफ़ा हैं कई साल से यार जो

उन्हें है मनाना  नए साल में 

गये साल पूरी न हसरत हुई

गले से लगाना नये साल…

Continue

Added by Tasdiq Ahmed Khan on January 3, 2016 at 6:00pm — 7 Comments

Monthly Archives

2022

2019

2018

2017

2016

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Sunday
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय Dayaram Methani जी, लघुकथा का बहुत बढ़िया प्रयास हुआ है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"क्या बात है! ये लघुकथा तो सीधी सादी लगती है, लेकिन अंदर का 'चटाक' इतना जोरदार है कि कान…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service