1212 1212 1212 1212
फँसा रहे बशर सदा गुनाह ओ सवाब में
हयात झूलती सदा सराब में हुबाब में
बची हुई अभी तलक महक किसी गुलाब में
बता रही हैं अस्थियाँ छुपी हुई किताब में
जहाँ जुदा हुए कभी रुके वहीं सवाल हैं
गुजर गई है जिन्दगी लिखूँ मैं क्या जबाब में
लिखें जो ताब पर ग़ज़ल सुखनवरों की बात अलग
वगरना लोग देखते हैं आग आफ़ताब में
फ़िज़ूल में ही अब्र ये छुपा रहा है चाँद को
जमाल हुस्न का कभी न छुप सका…
ContinueAdded by rajesh kumari on January 25, 2017 at 11:00am — 13 Comments
‘रिमझिम के तराने लेके आई बरसात.. याद आये किसी की वो पहली मुलाक़ात’ ---गाना बज रहा था बिजनेसमैन आनंद सक्सेना साथ साथ गुनगुनाता जा रहा था रोमांटिक होते हुए बगल में बैठी हुई पत्नी सुरभि के हाथ को धीरे से दबाकर बोला- “सच में बरसात में लॉन्ग ड्राइव का अपना ही मजा होता है”.
“मिस्टर रोमांटिक, गाड़ी रोको रेड लाईट आ गई” कहते हुए सुरभि ने मुस्कुराकर हाथ छुड़ा लिया|
अचानक सड़क के बांयी और से बारिश से तरबतर दो बच्चे फटे पुराने कपड़ों में कीचड़ सने हुए नंगे पाँव से गाड़ी के पास आकर बोले…
ContinueAdded by rajesh kumari on January 23, 2017 at 10:56am — 31 Comments
“भैय्या, जल्दी बस रोकना!!” अचानक पीछे से किसी महिला की तेज आवाज आई|
सभी सवारी मुड़ कर उस स्त्री को घूरती हुई नजरों से देखने लगी शाम होने को थी सभी को घर पँहुचने की जल्दी थी|
महिला के बुर्के में शाल में लिपटी एक नन्ही सी बच्ची थी जो सो रही थी |ड्राइवर ने धीरे धीरे बस को एक साइड में रोक दिया| पीछे से वो महिला आगे आई और तुरत फुरत में बच्ची को ड्राईवर की गोद में डाल कर सडक के दूसरी और झाड़ियों में विलुप्त हो गई|
ड्राईवर हतप्रभ रह गया कभी बच्ची को कभी सवारियों को देख…
ContinueAdded by rajesh kumari on January 18, 2017 at 7:16pm — 18 Comments
2122 2122 212
सुन हवाओं की जवाँ सरगोशियाँ
दूधिया चादर में लिपटी वादियाँ
देख भँवरे की नजर में शोखियाँ
चुपके चुपके हँस रही थीं तितलियाँ
नींद में सोये कँवल भी जग उठे
गुफ्तगू जब कर रही थी किश्तियाँ
छटपटाती कैद में थी चाँदनी
हुस्न को ढाँपे हुए थी बदलियाँ
मुट्ठियों में भींच के सिन्दूर को
मुन्तज़िर खुर्शीद की थी रश्मियाँ
फिक्र-ए-शाइर पे भी छाया नूर…
ContinueAdded by rajesh kumari on January 15, 2017 at 1:30pm — 18 Comments
2122 2122 2122 212
किसने होंटों पे तबस्सुम को सजाया कौन था
छुप के दिल में वस्ल का दीपक जलाया कौन था
साँसे मेरी जीस्त मेरी मेरा अपना था वजूद
धडकनों पे मेरी जिसने हक जमाया कौन था
जब कभी भीगी तख़य्युल में कहीं पलकें मेरी
शबनमी उन झालरों से मुस्कुराया कौन था
गुफ्तगू के उस सलीके पर मेरा तन मन निसार
बातों बातों में मुझे अपना बनाया कौन था
जब तेरी फ़ुर्कत…
ContinueAdded by rajesh kumari on January 9, 2017 at 3:00pm — 18 Comments
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