राधॆश्यामी छन्द :
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भारत की यह पावन धरती,प्रगटॆ कितनॆं भगवान यहाँ !!
समय समय पर महापुरुष भी,दॆनॆ आयॆ सद्ज्ञान यहाँ !!
वॆद,ऋचायॆं लिखकर जिसनॆ,जीवन शैली सिखला दी है !!
एक शून्य मॆं सारी दुनियाँ,जॊड़,घटा कर दिखला दी है !!
इतिहास यहाँ का भरा पड़ा, वलिदानों की गाथाऒं सॆ !!
गूँज रहा है शौर्य आज भी, वीरॊं की अमर चिताऒं सॆ !!
शौर्य-शिरॊमणि यॆ भारत है,सत्य,अहिंसा की है डॊरी !!
एक दृष्टि सॆ पूर्ण पुरुष है,एक…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 31, 2015 at 12:30am — 8 Comments
एक लघु प्रयास (ताटंक छन्द) *****************************
राष्ट्र-वन्दना के स्वर फिर से,वीणाओं में गूँजेंगे ।।
शीश चढ़ाकर अगणित बॆटॆ,भारत माँ को पूजेंगे ।।
षड़यंत्रों नें बाँध रखा है, आज हिन्द को घेरे में ।।
मानवता का दीप जलायें, आऒ सभी अँधेरे में ।।
अपने अपने धर्म दॆवता, लगते सबकॊ प्यारे हैं ।।
जितने प्यारे प्राण…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 29, 2015 at 3:33am — 8 Comments
एक रचना,,,,,
(कुकुभ छंद और लावणी छंद का संधिक प्रयॊग)
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चॊर लुटॆरॆ निपट उचक्कॆ, चढ़ उच्चासन पर बैठॆ !
काली करतूतॊं सॆ अपनॆ, मुँह कॊ काला कर बैठॆ !!
राम भरॊसॆ प्रजातन्त्र की, अब भारत मॆं रखवाली !
जिसकॊ माली चुना दॆश नॆं,है काट रहा वह डाली !!
चीख रही हैं आज दिशायॆं,नैतिकता का क्षरण हुआ !!
चारॊ ऒर कपट कॊलाहल, सूरज का अपहरण हुआ !!१!!
अमर शहीदॊं कॆ अब सपनॆं, सारॆ चकनाचूर हुयॆ ! …
Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 10, 2015 at 2:30am — 7 Comments
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