प्यार ने तेरे बीमार बना रखा है
जा चुके कल का अख़बार बना रखा है
फांसले दिल के अब मिटते नहीं हैं हमसे
चीन की खुद को दीवार बना रखा है
बेचकर गैरत अपनी सो चुके हैं कब के
हमने उनको ही सरदार* बना रखा है
शोर सा मेरे इस दिल में ऐसा मचा है
जैसे गठबंधन सरकार बना रखा है
चापलूसों का दरबार लगा है नादिर
झूठ को ही कारोबार बना रखा है
*सरदार = मुखिया
Added by नादिर ख़ान on January 24, 2013 at 5:30pm — 5 Comments
कोई सपना सुहाना चाहता हूँ
बच्चों का डर हटाना चाहता हूँ
तुमने खामोश आँखों से कहा जो
उन शब्दों को चुराना चाहता हूँ
डर ज़ुल्मों का भला क्यों-कर करें हम
जो सच है वो सुनाना चाहता हूँ
जिसने ले ली गरीबों की रोटी भी
फ़ांका उसको कराना चाहता हूँ
उलझे सब नालियों पर और कीचड़
मैं सागर से हटाना चाहता हूँ
नहीं “नादिर” शिकायत ज़िंदगी से
जिम्मेदारी निभाना चाहता हूँ
Added by नादिर ख़ान on January 18, 2013 at 5:00pm — 5 Comments
दामिनी तुम जिंदा हो
हर औरत का हौंसला बनकर
न्याय की आवाज़ बनकर
वक्त की ज़रूरत बनकर
आस्था की पुकार बनकर
एकता की मिसाल बनकर
तुम लाखों दिलों में जिंदा हो
न्याय की उम्मीद बनकर…
ContinueAdded by नादिर ख़ान on January 1, 2013 at 10:25pm — 8 Comments
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