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नादिर ख़ान's Blog – January 2013 Archive (3)

फांसले दिल के अब मिटते नहीं हैं हमसे

प्यार ने तेरे बीमार बना रखा है
जा चुके कल का अख़बार बना रखा है

फांसले दिल के अब मिटते नहीं हैं हमसे
चीन की खुद को दीवार बना रखा है

बेचकर गैरत अपनी सो चुके हैं कब के 
हमने उनको ही सरदार* बना रखा है

शोर सा मेरे इस दिल में ऐसा मचा है
जैसे गठबंधन सरकार बना रखा है

चापलूसों का दरबार लगा है नादिर
झूठ को ही कारोबार बना रखा है

*सरदार = मुखिया

Added by नादिर ख़ान on January 24, 2013 at 5:30pm — 5 Comments

कोई सपना सुहाना चाहता हूँ

कोई  सपना  सुहाना  चाहता  हूँ

बच्चों  का  डर  हटाना चाहता हूँ

 

तुमने खामोश आँखों से कहा जो

उन शब्दों को चुराना  चाहता हूँ

 

डर ज़ुल्मों का भला क्यों-कर करें हम

जो सच है वो सुनाना चाहता हूँ

 

जिसने ले ली गरीबों की रोटी भी

फ़ांका उसको कराना  चाहता हूँ

 

उलझे सब नालियों पर और कीचड़

मैं सागर से हटाना चाहता हूँ

 

नहीं “नादिर” शिकायत ज़िंदगी से

जिम्मेदारी निभाना  चाहता  हूँ

Added by नादिर ख़ान on January 18, 2013 at 5:00pm — 5 Comments

दामिनी तुम जिंदा हो

दामिनी तुम जिंदा हो

हर औरत का हौंसला बनकर

न्याय की आवाज़ बनकर

वक्त की ज़रूरत बनकर

आस्था की पुकार बनकर

एकता की मिसाल बनकर

तुम लाखों दिलों में जिंदा हो

न्याय की उम्मीद बनकर…

Continue

Added by नादिर ख़ान on January 1, 2013 at 10:25pm — 8 Comments

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