22 22 22 22 22 2
हाथों को पत्थर , आँखों को लाली दो
मुँह खोलो, चीखो चिल्लाओ , गाली दो
ऊँचे सुर में आल्हा गाओ , सरहद पर
वीरों को मंचों से मत कव्वाली दो
जिस बस्ती मे रहा हमेशा अँधियारा
उस बस्ती को दिन में भी दीवाली दो
तुम पगड़ी पहनो ले जाओ केसरिया
लाओ सर पर मेरे टोपी जालीदो
छद्म वेश में राहू केतू आये फिर
अमृत नहीं उन्हे ज़हर की प्याली दो
कहीं मूर्खता की सीमा तो…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on January 25, 2016 at 9:40am — 14 Comments
आदरनीय वीनस भाई जी की एक गज़ल की ज़मीन पर कहने की एक कोशिश
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22 22 22 22 22 2
दुश्मन को महमान बनाये बैठे हैं
गुलशन को वीरान बनाये बैठे हैं
सिर्फ जीतने की ख़्वाहिश है जिनकी , वो
गद्दारों को जान बनाये बैठे हैं
इंसानी कौमें हैं खुद पे शर्मिन्दा
ऐसों को इंसान बनाये बैठे हैं
जिस्म काटने की चाहत में भारत का
दिल में पाकिस्तान…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on January 19, 2016 at 8:00am — 21 Comments
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
बहर - हज़ज़ मुसमन सालिम
न पूछोगे, सतायेंगी तुम्हें रुसवाइयाँ कब तक
अगर तुम जान लो पीछे चली परछाइयाँ कब तक
हैं उनकी कोशिशें तहज़ीब को बेशर्मियाँ बाटें
मुझे है फ़िक्र झेलेंगे अभी बेशर्मियाँ कब तक
ज़रा सा गौर फरमायें कसाफत है ये नदियों की ( कसाफत - गंदगी )
“समन्दर पर उठाओगे बताओ उँगलियाँ कब तक ”
शराफत की कबा कब तक बताओ बुजदिली ओढ़े
सहन करता रहेगा मुल्क ये शैतानियाँ कब…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on January 18, 2016 at 8:07am — 20 Comments
1222 1222 1222
बजाहिर जो लगे हैं ग़मगुसार अपना
छिपा लाये हैं फूलों में वो ख़ार अपना
बहुत गर्मी यहाँ मौसम ने दी हमको
जिधर ग़ुज़रे उधर बांटे बुखार अपना
जो लूटे हैं वो वापस क्या हमें देंगे
चलो हम ही कहीं खोजें करार अपना
ज़रा रुकना, उन्हें गाली तो दे आयें
नहीं अच्छा रहे बाक़ी उधार अपना
बुढ़ापा बोलता तो है , सहारा ले
मगर अब भी उठाता हूँ,मैं भार अपना
मै सीरत…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on January 12, 2016 at 7:30am — 19 Comments
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