2122 2122 212
दिल से जब नाम-ए ख़ुदा जाता रहा
दरमियानी मो’जिजा जाता रहा
ख़ुद पे आयीं मुश्किलें तो, शेख जी
क्यूँ भला हर फल्सफ़ा जाता रहा
जो इधर थे हो गये जब से उधर
कह दिये , हर वास्ता जाता रहा
अब ख़बर में वाक़िया कुछ और है
था जो कल का हादसा जाता रहा
गर हुजूम –ए शहर का है साथ , तो
जो किया तुमने बुरा जाता रहा
आँखों में पट्टी, तराजू हाथ में
जब दिखे, तो…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on January 25, 2017 at 8:18am — 27 Comments
2122 1212 22
गर वो करता है बात बेपर की ?
क्या ज़रूरत नहीं है पत्थर की
क्या हुकूमत लगा रही है अब ?
कीमत उस फतवे से किसी सर की
सिर्फ तहरीर में मिले भाई
सुन कहानी तू दाउ- गिरधर की
जिनके अजदाद आज ज़िन्दा हों
वो करें बात गुज़रे मंज़र की
क्या मुहल्ला तुझे बतायेगा ?
आग भड़की थी कैसे उस घर की
दीन ओ ईमाँ की बात करता है
क्या हवा लग न पायी बाहर की
रोशनी आज…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on January 18, 2017 at 8:30am — 15 Comments
122 122 12 2 122
जिधर भी मैं जाऊँ डगर आपकी है
हवा मे फज़ा में ख़बर आपकी है
महज़ रात थी आपके हक़ में लेकिन
सुना है कि अब हर पहर आपकी है
हरिक पुत्र को मुफ़्त मिलती है ममता
तो, ममता भी अब उम्र भर आपकी है
रपट कौन लिक्खे सभी आपके हैं
कि सरकार भी मोतबर आपकी है
ज़ियारत करें ना करें आप लेकिन
सियासत पे टेढ़ी नज़र आपकी है
नज़ीर आपकी अब मैं दूँ भी तो कैसे
हरी-सावनी सी नज़र आपकी…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on January 12, 2017 at 10:30am — 13 Comments
221 2121 1221 212
तंग आ गया हूँ हालते क़ल्ब-ओ-ज़िगर से मैं
उकता गया हूँ ज़िंदगी, तेरे सफर से मैं
होश ओ हवास ओ-बेख़ुदी की जंग में फ़ँसे
दिल सोचने लगा है कि जाऊँ किधर से मैं
मंज़िल मेरी उमीद में जीती है आज भी
पर इलतिजाएँ कर न सका रहगुज़र से मैं
ऐसा नहीं गमों से है नाराज़गी कोई
उनकी ख़बर तो लेता हूँ शाम-ओ-सहर से मैं
अब नफरतों, की शक़्ल भी आतिश फिशाँ हुईं
डर है झुलस न जाऊँ कहीं इस शरर से…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on January 8, 2017 at 10:00am — 19 Comments
2122 2122 2122
बात कहने का सही लहज़ा नहीं है
या जो रिश्ता था कभी, वैसा नहीं है
वो ये कह लें, उनमें तो धोखा नहीं है
पर हक़ीकत है, उन्हें मौक़ा नहीं है
गर दशानन आज भी है आदमी में
औरतों में क्या कहीं सुरसा नहीं है ?
जो न चल पाया कभी इक गाम अब तक
उसका दावा है कि वो भटका नहीं है
ज़ुर्म की गंगा सियासत से है निकली
लाख कह लें, वो कि सच ऐसा नहीं है
योजनायें उच्च –निम्नों…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on January 3, 2017 at 9:30am — 30 Comments
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