एक.
अपने सुख की खोज में,सब जा रहे विदेश।
वहां जा कर पता चला, कितना अच्छा देश।।
दो-
सब बदलने की कोशिश,करते हैं सब आज।
आदमी वहीं का वहीं, बदला नहीं समाज।।
Added by सूबे सिंह सुजान on January 12, 2013 at 10:57am — 7 Comments
जिंदगी हम भी समर तक आ गये।
गाँव से चलकर नगर तक आ गये।।
मुस्कुराते - मुस्कुराते वो सभी …,
रास्ते के पेड घर तक आ गये।
सामने आते ही उनके यूँ हुआ,
ज़ख़्म सब दिल के नज़र तक आ गये।
खूबसूरत सी बला लगती है वो,
बाल जब सर के कमर तक आ गये।
एक जंगल में पुराना पेड हूँ,
काटने को वो इधर तक आ गये।
प्यार एहसासों से निकला इस तरह,
दिल के रिश्ते अब खबर तक आ गये।।
……सूबे सिंह सुजान
Added by सूबे सिंह सुजान on January 4, 2013 at 9:30pm — 6 Comments
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |