स्त्री और प्रकृति
प्रकृति और स्त्री
कितना साम्य ?
दोनों में ही जीवन का प्रस्फुटन
दोनों ही जननी
नैसर्गिक वात्सल्यता का स्पंदन,
अन्तःस्तल की गहराइयों तक,
दोनों को रखता एक धरातल पर
दोनों ही करूणा की प्रतिमूर्ति
बिरले ही समझ पाते जिस भाषा को
दोनों ही सहनशीलता की पराकाष्ठा दिखातीं
प्रेम लुटातीं उन…
Added by mohinichordia on January 14, 2012 at 10:30am — 9 Comments
Added by mohinichordia on January 8, 2012 at 8:47am — 8 Comments
मेरे मन !
तुमने अपनी खुशी खो दी ?
मायूस हो गये,
मुर्झा गये ?
किसी ने तुमको झिड़का
या दर्द दिया,
अपमानित, प्रताड़ित किया और
तुमने घुटने टेक दिये, क्यों ?
क्यों किसी की ओछी बातों से ,
अपशब्दों की बौछार से,
कठोर शब्दों के तीरों से
छलनी हो गये ?
कमज़ोर हो गये ?
समझना, वो शब्द
तुम्हारे लिए थे ही नहीं
सिर्फ किसी को अपने
दिल की कड़वाहट निकालने का
माध्यम मिल गया था ।
सुना…
ContinueAdded by mohinichordia on January 4, 2012 at 3:30pm — 7 Comments
तमन्नाओं की ऊँची उड़ान
का आभास हुआ
जब कुछ बच्चों को
घर की मुंडेर
पर चढ़कर
पतंग उड़ाते देखा
अलग अलग रंगों की
छटा बिखेरती,
ऊँची और ऊँची
चढ़ रही थी
आसमान में
परिंदे उड़ते हैं जैसे ।
मेरी पतंग ही रानी है
शायद यही सोचकर
लड़ाया पेंच एक बच्चे ने,
दूसरी पतंग धराशायी
हो गई
दूसरे बच्चे ने भी हार न मानी
फिर मांझा चढ़ाया
और दूसरे ही क्षण
उसकी शहजादी करने…
ContinueAdded by mohinichordia on January 2, 2012 at 10:30am — 7 Comments
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