मैं घायल सा परिंदा हूँ कहाँ जाऊं कहाँ जाऊं,
हैं पर टूटे मैं सहमा हूँ कहाँ जाऊं कहाँ जाऊं.
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यही किस्मत से पाया है, जो अपना था पराया है,
परीशां हूँ मैं तनहा हूँ कहाँ जाऊँ कहाँ जाऊँ
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भले तपता ये सहरा हो, तुम्हें अपना बनाया तो,
घना साया सा पाया हूँ कहाँ जाऊँ कहाँ जाऊँ
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तुम्ही से जिंदगी मेरी, तुम्ही से हर ख़ुशी मेरी,
तुम्हें छोडूं तो जलता हूँ, कहाँ जाऊँ कहाँ जाऊँ
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मेरी गजलें अधूरी थी, तुम्हें पाया तो पूरी…
ContinueAdded by इमरान खान on January 2, 2012 at 4:00pm — 10 Comments
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