उम्र का सफर ....
हम उम्र के साथी
शायद मेरी तरह
बूढ़े होने लगे हैं
केशों में चमकती चांदी
चेहरे की झुर्रियां
जीवन का सफर का
बेबाक आईना हैं
हाँ, सच
ये तो मेरी ही तरह बूढ़े हो चुके हैं
इनके हाथ काम्पने लगे हैं
मुंह की लार बस में नहीं है
ज़िंदगी को
बिना किसी सहारे के जीने वाले
बूढ़ी थकी लाठी पर
अपनी देह का बोझ लादे
डगमगाते पाँव लिए
जीवन का शेष सफर
तय करते नज़र आते हैं
क्या ! जीवन के सूरज का…
ContinueAdded by Sushil Sarna on January 29, 2016 at 8:53pm — 8 Comments
किस लिए वो हसीं बेवफा हो गयी (एक ग़ज़ल एक प्रयास )
२१२ x ४
रदीफ़=हो गयी
काफ़िया=आ
किस लिए वो हसीं बेवफा हो गयी
जान हम से हमारी जुदा हो गयी !!१!!
अब गिला आसमां से नहीं है हमें
बे-असर अब हमारी दुआ हो गयी !!२!!
हाल अपना सुनायें किसे हम भला
लो मुहब्बत हमारी खता हो गयी !!३!!
रात भर करवटों में वो लिपटी रही
याद उनकी हमारी क़ज़ा हो गयी !!४!!
दिल भला या बुरा समझता है कहाँ
ये मुहब्बत सुल्ह की रज़ा हो गयी…
Added by Sushil Sarna on January 21, 2016 at 8:57pm — 6 Comments
बोलते पलों का घर .....
हमारे और तुम्हारे बीच
कितनी मौनता है
एक लम्बे अंतराल के बाद हम
एक दूसरे के सम्मुख
किसी अपराध बोध से ग्रसित
नज़रें नीची किये ऐसे खड़े हैं
जैसे किसी ताल के
दो किनारों पर
अपनी अपनी खामोशी से बंधी
दो कश्तियाँ//
कितने बेबस हैं हम
अपने अहंकार के पिघलते लावे को
रोक भी नहीं सकते//
चलो छोडो
तुम अपने तुम को बह जाने दो
मुझे भी कुछ कहने को
बह जाने दो
शायद ये खारा…
Added by Sushil Sarna on January 18, 2016 at 7:50pm — 6 Comments
दिल के अहसासों को ...
मैं नहीं जानता
वो किसकी दुआ थी
मैं नहीं जानता
वो किसकी सदा थी
मैं तो ये भी नहीं जानता
कब उसके लम्स
मेरे ज़िस्म पर
अपनी पहचान छोड़ गए
शायद वो रेशमी इज़हार
खामोशी की कबा में ग़ुम थे
कब साँझ ने
तारीक का लिबास पहन लिया
बस ! न जाने कब
चुपके से इक ख्याल
हकीकत बन गया
न पलक कुछ बोली
न लबों पे कोई जुंबिश हुई
दिल के अहसासों को
इक दूजे की हथेलियों ने
इक दूजे…
Added by Sushil Sarna on January 7, 2016 at 7:30pm — 6 Comments
शिकन भरा लिबास......
ये सुर्ख सी आँखें
बिखरी हुई जुल्फें
शिकन भरा लिबास देख
आज अपने ही दर्पण में
मैं लुटी नज़र आती हूँ //
हर शब की तरह
जो आज भी
इस जिस्म को रूहानी ज़ख़्म दे गया
फिर उसी के साथ बेवजह
जीने की ज़िद कर जाती हूँ //
जानती हूँ
वो फिर कुछ पल के लिए आएगा
अपने दिए ज़ख्मों पे
झूठे वादों का मरहम लगाएगा
मैं उसकी बातों में आजाऊंगी
भूल जाऊँगी दर्द ज़ख्मों का
और अपना अस्तित्व भी भूल जाऊँगी //
झूठा ही…
Added by Sushil Sarna on January 6, 2016 at 4:29pm — 6 Comments
कितना अच्छा हो ....
अभी-अभी
हवाओं के थपेड़ों से बजते
वातायन के पटों ने
तिमिर में सुप्त चुप्पी से
चुपके से कुछ कहा //
अभी-अभी
रिमझिम फुहारों ने
चंचल स्मृति की
असीम गहराईयों संग
अंगड़ाई ली //
अभी-अभी
एक रूठा पल
घोर निस्तब्धता को
अपनी निःशब्द श्वासों से
जीवित कर गया //
अभी-अभी
एक तारा टूट कर
किसी की झोली
सपनों से भर गया //
अभी-अभी से लिपट
कभी पलक…
Added by Sushil Sarna on January 4, 2016 at 7:48pm — 12 Comments
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