2122 2122 2122 2122
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मन किसी अंधे कुए में नित वफ़ा को ढूँढता है
जबकि तन लेकर हवस को रात दिन बस भागता है
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तार कर इज्जत सितारे घूमते बेखौफ होकर
कह रहे सब खुल के वचलना चाँद की भोली खता है
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जिंदगी भर यूँ अदावत खूब की तूने सभी से
मौत के पल मिन्नतें कर राह में क्यों रोकता है
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जाँच को फिर से बिठाओ आँसुओं कोई कमीशन
घाव की मौजूदगी में दर्द …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 29, 2015 at 11:14am — 28 Comments
2122 1221 2212
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रूह प्यासी बहुत घट ये आधा न दो
आज ला के निकट कल का वादा न दो
रूख से जुल्फें हटा चाँदनी रात में
चाँद को आह भरने का मौका न दो
फिर दिखा टूटता नभ में तारा कोई
भोर तक ही चले ऐसी आशा न दो
प्यार के नाम पर खेल कर देह से
रोज मासूम सपनों को धोखा न दो
सात फेरों की रस्में निभाओ मगर
देह तक ही टिके ऐसा रिश्ता न दो
चाहिए अब …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 23, 2015 at 11:00am — 10 Comments
२१२२ २१२२२ २१२
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हो गया है सत्य भी मुँहचौर क्या
या दिया हमने ही उसको कौर क्या
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कालिखें पगपग बिछी हैं निर्धनी
तब बताओ भाग्य होगा गौर क्या
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मार डालेगा मनुजता को अभी
जाति धर्मो का उठा यह झौर क्या
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हैं परेशाँ आप भी मेरी तरह
धूल पग की हो गयी सिरमौर क्या
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फूँक दे यूँ शूल जिनके घाव को
मायने रखता है उनको धौर क्या
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प्यार माथे का …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 19, 2015 at 11:46am — 20 Comments
2122 2122 212
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बस गया है लाल बाहर क्या करे
हो गया है खेत बंजर क्या करे
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एक बूढ़ी माँ अकेली रह गई
काटने को दौड़ता घर क्या करे
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चाँद लौटेगा नहीं अब, है पता
रात भर रोकर भी अम्बर क्या करे
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ठोकरें खाना खिलाना भाग्य में
राह का टूटा वो पत्थर क्या करे
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रीत तो थी, जिंदगी भर साथ की
दे गया धोखा जो सहचर क्या करे
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हाथ आयी करवटों की बेबसी
मखमली…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 14, 2015 at 11:26am — 14 Comments
2122 1221 2212
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चाँद आशिक तो सूरज दीवाना हुआ
कम मगर क्यों खुशी का खजाना हुआ
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बोलने जब लगी रात खामोशियाँ
अश्क अम्बर को मुश्किल बहाना हुआ
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मिल भॅवर से स्वयं किश्तियाँ तोड़ दी
बीच मझधार में यूँ नहाना हुआ
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जब पिघलने लगे ठूँठ बरसात में
घाव अपना भी ताजा पुराना हुआ
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देख खुशियाँ किसी की न आँसू बहे
दर्द अपना भी शायद सयाना…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 12, 2015 at 12:30pm — 23 Comments
2122 2122 2122 212
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अजनवी सी सभ्यता के बीज बोकर रह गए
सोचकर अपना, किसी का बोझ ढोकर रह गए
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वक्त सोने के जगा करते हैं देखो यार हम
जागने के वक्त लेकिन रोज सोकर रह गए
***
लोरियाँ माँ की, कहानी नानियों की, साथ ही
चाँद तारे , फूल, तितली लफ़्ज होकर रह गए
***
कसमसाकर दिल जो खोले है पुरानी पोटली
याद कर बचपन को यारो नैन रोकर रह गए
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मानता हूँ , है हसोड़ों की जरूरत, दुख मगर
आज नायक भी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 8, 2015 at 11:11am — 18 Comments
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