Added by Samar kabeer on February 20, 2015 at 11:14pm — 42 Comments
जीवन का ताना
अकेला उदास डोलता रहा
बाना कहाँ मिला
बुनने को
सच के ताने को
झूठे बानों से
बुनते रहे
एक जख्मी चादर
फरेब के सर पर ओढ़ा
सब्र के कारवाँ चलते रहे
जीने की रिवायत से
समझोता करते रहे
बिन प्यार की
बेरंग चादर ओढ़े
मुखोटों की मुस्कुराहटों का
दम भरते रहे
काश बाना
प्यार की सच्चाई से
खिलता कोई
तो एक सतरंगी चदरिया
बुन लेता
और बस…
ContinueAdded by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on February 17, 2015 at 11:21am — 12 Comments
बह्र : २१२ २१२ २१२२
दूसरों में कमी ढूँढ़ते हैं
कैसे कैसे ख़ुशी ढूँढ़ते हैं
प्रेमिका उर्वशी ढूँढ़ते हैं
पर वधू जानकी ढूँढ़ते हैं
हर जगह गुदगुदी ढूँढ़ते हैं
घास भी मखमली ढूँढ़ते हैं
वोदका पीजिए आप, हम तो
दो नयन शर्बती ढूँढ़ते हैं
वो तो शैतान है जिसके बंदे
क़त्ल में बंदगी ढूँढ़ते हैं
आज भी हम समय की नदी में
बह गई ज़िन्दगी ढूँढ़ते हैं
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(मौलिक एवं…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 15, 2015 at 11:42pm — 28 Comments
तुम चलाओ गैंती-फावड़ा
काटो पत्थर, बनाओ नाली
दिन है तो सूरज को घड़ी मानो
और रात है तो गिनते रहो एक-एक प्रहर
कुत्ते कब भौंके
सियार कब चीखे
मुर्गे ने कब बांग दी
यही है तुम्हारी नियति....
तुम चलाओ छेनी-हथौड़ी
तुम्हारे लिए बन नहीं सकतीं
ऐसी यांत्रिक घड़ियाँ
जिनमे काम के घंटों का हिसाब हो
और आराम के पल का ज़िक्र हो...
तुम लिखो कविता-कहानी
फट जाए चाहे
माथे की उभरी नसें
फूट जाए ललाई…
Added by anwar suhail on February 15, 2015 at 7:30pm — 7 Comments
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