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ये दौलत आदमी को आदमी रहने कहाँ देती ये बारिश बँध के इन नदियों को भी बहने कहाँ देती गजब का तैश अहदे नौ के इस आदम में देखा है ये ऐठन आदमी को आज कुछ सहने कहाँ देती हुए आजाद आजादी मिली कहने को बस हमको मगर दहशत दिलों की कुछ हमें कहने कहाँ देती ये बहशीपन ये गुंडागर्दी ये आतंक का साया शराफत मेरी दुनिया में… |
Added by Dr Ashutosh Mishra on February 21, 2016 at 2:08pm — 11 Comments
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