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नाथ सोनांचली's Blog – February 2017 Archive (4)

रिश्तों में गर रार करोगे (तरही गजल)

22 22 22 22



रिश्तों में जब रार करोगे

कुनबा अपना ख्वार करोगे ||



पैर तुम्हारा बच पायेगा?

राहें गर पुर खार करोगे ||



जाति धर्म पर वोट दिया तो

मत अपना बेकार करोगे ||



हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई

सब इक, कब स्वीकार करोगे? ||



लोकतंत्र के तुम प्रहरी हो

भ्रष्ट तंत्र पर वार करोगे? ||



राजनीति बूढों से बोली

*हमसे कितना प्यार करोगे?* ||



धन के साथ बँटेगा दिल भी

जो ऊंची दीवार करोगे ||



चीर हरण… Continue

Added by नाथ सोनांचली on February 22, 2017 at 1:00pm — 13 Comments

मैं भी गलती करता हूँ (तरही गजल)

बह्र 22 22 22 2

हाड़ मास का पुतला हूँ
मैं भी गलती करता हूँ ||

बच्चों को फुसलाने में
दिल रोये पर हँसता हूँ ||

जाति धर्म के बीच फँसी
लोक तंत्र की जनता हूँ||

सीख न पाया मैं लहजा
यूँ तो ग़ज़लें कहता हूँ ||

जीवन नश्वर है फिर भी
आशाओं पर जीता हूँ ||

अंक गणित सा जीवन है
गुणा भाग में उलझा हूँ ||

साथ लिए  इक ख़ालीपन
"अपनी धुन में रहता हूँ ||"


(मौलिक व अप्रकाशित)'₹

Added by नाथ सोनांचली on February 19, 2017 at 2:53pm — 26 Comments

अंधकार में सोयी तेरी रूह जगाने आया हूँ

क्या थे कल तुम आज हुए क्या यही बताने आया हूँ |

अंधकार में सोयी तेरी रूह जगाने आया हूँ ||

याद अतीत करो अपना जब तुम तूफान उठाते थे |

सुनकर बस इक तेरी आहट अरिदल हिय थर्राते थे ||1||



पत्थर भी साक्षी हैं तेरे, उन सच्चे बलिदानों के |

मातृभूमि पर मरने वाले, बांका वीर जवानों के ||

पूर्वज मुट्ठी भर थे लेकिन लाखों पर वे भारी थे |

पलभर में दुश्मन नष्ट किये जो बने महामारी थे ||2||



इसी धरा पर कोई बाला अग्नि चिता पर लेटी थी |

वक़्त पड़ा तब शीश कटाने…

Continue

Added by नाथ सोनांचली on February 17, 2017 at 7:30am — 6 Comments

झुग्गियाँ

आज सुनो मैं तुमको यारों, सच्ची बात बताता हूँ |

झुग्गी में रहने वालों की, इक तस्वीर दिखाता हूँ ||

दूषित पानी हवा विषैली, जैसी कई निशानी है |

ये प्यासे नित कूँआ खोदें, इनकी यही कहानी है |1|



कोई बच्चा फेंका जूठन, जहाँ प्यार से खाता है |

कोई बचपन से ही घर का, सारा बोझ उठाता है ||

यहाँ घरों में हर बालक का, जन्म कर्ज में होता है |

उम्र कर्ज में ही कटती है, कर्ज लिए ही सोता है |2|



कोई नन्ही बुधिया मुनिया, नग्न बदन दिख जाती है |

कोई बुढ़िया बिन… Continue

Added by नाथ सोनांचली on February 12, 2017 at 2:30pm — 12 Comments

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"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
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"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
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"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
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