"राह के कांटें हुए बलवान भी"
आप की खातिर है हाजिर जान भी।
हाथ का पंजा हुआ हैरान भी।।
कोरे कागज का कमल खिलता नहीं,
आज कल भौंरे करें पहचान भी।
अब चुनावी दौर का मंजर यहां,
बढ़ रही है रैलियों की शान भी।
भुखमरी-बेकारी सिर चढ़ बोलती,
हर किसी रैली में जन वरदान भी।
खो गर्इ है शान-शौकत-आबरू,
बो रहे हैं लोभ-साजिश-धान भी।
अब भरोसा भी नहीं उस्ताद पर,
गिरगिटों के रंग में…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 24, 2014 at 9:00pm — 13 Comments
दान की लिखता कथा
धर्म रेखा
खींच कर
जाति बंधन से बॅधें,
प्रेम सा
उपकार करते
साधना
सत्कार से।
उपहास होता कर्म का
अति…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 24, 2014 at 7:59pm — 6 Comments
दोहा...........पूजा सामाग्री का औचित्य
रोली पानी मिल कहें, हम से है संसार।
सूर्य सुधा सी भाल पर, सोहे तेज अपार।।1
चन्दन से मस्तक हुआ, शीतल ज्ञान सुगन्ध।
जीव सकल संसार से, जोड़े मृदु सम्बन्ध।।2
अक्षत है धन धान्य का, चित परिचित व्यवहार।
माथे लग कर भाग्य है, द्वार लगे भण्डार।।3
हरी दूब कोमल बड़ी, ज्यों नव वधू समान।
सम्बन्धों को जोड़ कर, रखती कुल की शान।।4
हल्दी सेहत मन्द है, करती रोग-निरोग।
त्वचा खिले…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 11, 2014 at 6:28pm — 12 Comments
दोहा-----------बसन्त
आम्र वृक्ष की डाल पर, कोयल छेड़े तान।
कूक कूक कर कूकती, बन बसंत की शान।।1
वन उपवन हर बाग में, तितली रंग विधान।
चंचल मन उदगार है, प्रीति-रीति परिधान।।2
क्षितिज प्रेम की नींव है, कमल भवन, अलि जान।
दिन भर गुन गुन गान है, सांझ ढले रस पान।।3
मन मन्दिर है प्रेम का, जिसमें रहते संत।
विविध रंग अनुबंध में, खिल कर बनों बसंत।।4
पुरवार्इ मन रास है, सकल बहार उजास।
किरनें जल…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 7, 2014 at 9:30pm — 9 Comments
हे शारदे मां.....! हे शारदे मां !
जगत की जननी
कल्याणकारी
संयम उदारी
अति धीर धारी
व्याकुल सुकोमल, बालक पुकारे।..... हे शारदे मां.....!
हंसा सवारी
मंशा तुम्हारी
तू ज्ञान दाती
लय ताल भाती
है हाथ पुस्तक, वीणा तु धारे।... हे शारदे मां.....!
संसार सारं
नयना विशालं
हृदयार्विन्दं
करूणा निधानं
अखण्ड सुविधा, सरगम उचारे।.... हे शारदे मां.....!
माता हमारी
बृहमा कुमारी
है मुक्तिदाती
यश कीर्ति…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 4, 2014 at 9:41pm — 4 Comments
!!! बनो दिनमान से प्रियतम !!!
बनो दिनमान से प्रियतम,
नित्य ही नम रहे शबनम।।
उजाला हो गया जग में,
रंग से दंग हुर्इ सृष्टि।
लुभाता रूप यौवन तन,
गंध के संग हुर्इ वृष्टि।
समां भी हो गया सुन्दर, जलज-अलि का हुआ संगम।। 1
पतंगी डोर सी किरनें,
बढ़ी जाती दिशाओं में।
मधुर गाती रही चिडि़या,
नाचते मोर बागों में।
कल-कल ध्वनि करें नदिया, लहर पर नाव है संयम।। 2
किनारों पर बसी बस्ती,
सुबह औ शाम की…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 4, 2014 at 8:00pm — 8 Comments
हॅसी रूप कलियों का जब मुस्कुराया,
उदासी गर्इ भौंरा फिर गुनगुनाया।।
बहारों की रानी,
राजनीति पुरानी।
नर्इ-नर्इ कहानी,
जवानी-दीवानी।
महगार्इ बढ़ाकर,
नववधू घर आती।
दिशाएं भी छलती,
गरीबी की थाती।
अमीरों का राजा, अल्ला-राम आया।। 1
सजाते हैं संसद,
समां बर्रा छत्ता।
परागों को जन से,
चुराती है सत्ता।
अगर रोग-दु:ख में,
पुकारे भी जनता।
शहर को जलाकर,
कमाते हैं भत्ता।
चुनावों…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 3, 2014 at 10:30pm — 14 Comments
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