तुम्हें मेरी फिक्र कहाँ है
साँझ के आगोश में
दिन भर की थकान
राहत ले रही है
विश्वास की लौ धीरे-धीरे टिमटिमा रही है
ऐसे में अब तुम्हारी प्रतीक्षा शेष है
तुम्हें मेरा वादा कहाँ याद है
कह दो आज फिर मैं झूठ नहीं बोलूँगा
तुम्हारे झूठ पर मेरा विश्वास टिका है
शहर के कॉफी हाऊस से
बूढ़ों की टोलियाँ भी घर जा रही है
मस्जिद की मीनार और
मंदिर के कलश पर
दिन भर मंडराने वाले
कबूतरों का झुंड भी चला गया है
ऐसे में मेरे भरोसे की पतवार कहाँ…
Added by Mohammed Arif on February 21, 2019 at 3:18pm — 1 Comment
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