तसव्वुरात
रुँधा हुआ अब अजनबी-सा रिश्ता कि जैसे
फ़कीर की पुरानी मटमैली चादर में
जगह-जगह पर सूराख ...
हमारी कल ही की करी हुई बातें
आज -- चिटके हुए गिलास
के बिखरे हुए टुकड़ों-सी ...
कुछ भी तो नहीं रहा बाकी
ठहराने के लिए
पार्क के बैंच को अब
अपना बनाने के लिए
फिर क्यूँ फ़कत सुनते ही नाम
मैं तुम्हारा ... तुम मेरा ...
कि जैसे सीनों पर हमारे किसी ने
मार…
ContinueAdded by vijay nikore on February 19, 2014 at 11:30am — 20 Comments
गहराइयाँ
घड़ी की दो सूइयाँ
काली गहराइयाँ
समय के कन्धों पर
उन्मुक्त
फिर भी बंधी-बंधी
पास आईं, मिलीं
मिलीं, फिर दूर हुईं
कोई आवाज़ .. टिक-टिक
बींधती चली गई
था भूकम्प, या मिथ्या स्वप्न
अब वह घड़ी पुरानी रूकी हुई
उखड़े अस्तित्व की छायाओं में
लटक रही है बेजान ।
समय की दीवार
रूकी धड़कन का एहसास ...
और वह सूइयाँ
कोई पुरानी भूली हुई…
ContinueAdded by vijay nikore on February 5, 2014 at 10:00am — 24 Comments
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