2112 2112 2112 2112
रात ढली मुझे पिला और जहर और जहर
इश्क ही ढाता है सदा और कहर और कहर
गाँव से भी दूर हुयी सुरमई माटी की गमक
दीखता हर ओर जिला और शहर और शहर
मौसम अब यार मुझे खुशनुमा लगते है सभी
दिल में उठती है लहर और लहर और लहर
रात ये बचपन की बड़ी सादगी में बीत गयी
अब है जवानी की सहर और सहर और सहर
जोश में सागर तू मचल आज है पूनम की कला
बीच लहर चाँद खिला…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 16, 2017 at 10:16pm — 7 Comments
221 2121 1221 212
बदनाम है जरूर मगर नाम तो हुआ
अफसाना जिदगी का सरे आम तो हुआ
आँखों में बंद था कभी सागर शराब का
वह तज्रिबे आशिक से लबे जाम तो हुआ
महफिल थी जम गयी उनके खयाल की
था जश्न थोड़ी देर पर दिल-थाम तो हुआ
उतरा था एक बार मुहब्बत की जंग में
नाकाम जंग होना था नाकाम तो हुआ
कहते है यार इश्क है अंजाम-बद बहुत
होना था जो अंजाम वो अंजाम तो…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 15, 2017 at 8:39pm — 13 Comments
1222 1222 1222 1222
कहो तो घोल दें मिसरी ये हम अधिकार रखते हैं
सिराओं में जहर भर दे वो हम फुफकार रखते हैं
बहुत से बेशरम आते हैं छुप –छुप कर हमारे घर
उन्ही के दम से हम भी हैसियत सरकार रखते हैं
दिखाते है हमें वे शान-शौकत से झनक अपनी
तो उनसे कम नहीं घुँघरू की हम झनकार रखते हैं
छिपे होते है आस्तीनों में अक्सर सांप जहरीले
इधर हम बज्म में उनसे बड़े फनकार रखते…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 7, 2017 at 8:13pm — 12 Comments
122 122 122 12
कि जब आप उनके कहाने लगे
मुझे सारे वादे बहाने लगे
किया चाक दिल था हमारा अभी
महल ख्वाब का क्यूँ ढहाने लगे
यकीं था मुझ्र भूल जाओगे अब
गमे याद तुम तो तहाने लगे
कहा था अगम एक सागर हूँ मैं
गजब है कि सागर थहाने लगे
चिता ठीक से जल न पाई अभी
मगर आप गंगा नहाने लगे
(मौलिक/अप्रकाशित)
Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 2, 2017 at 8:00pm — 8 Comments
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