दॊ सवैया (मत्तगयंद) हॊली संदर्भ मॆं
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1)
रंग बिरंग गुलाल लियॆ सखि, ताकत झाँकत गैल हमारी !!
संग दबंग लफंग लियॆ कछु, आइ गयॊ अलि छैल-बिहारी !!
मॊहन माधव मारि दई तकि, जॊबन बीच भरी पिचकारी !!
भूल गई सुधि लाजनि तॆ सखि,भीगि गई रँग कॆशर सारी !!
2)
अंग अनंग उमंग उठी सखि, भंग मतंग करैं किलकारी !!
हूक उठी…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on March 30, 2013 at 8:30am — 11 Comments
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झाँसी की रानी रहॊगी प्राण लॆकर ही मेरॆ,
मौनी बाँध बैठी हॊ बॊल न उचारती हॊ ॥
बनाय खाय सिगड़ी बुझाय बिस्तर लगा,
औंधी पड़ी खाट पर तुम डकारती हॊ ॥
सात फॆरॆ जॊ लॆ लियॆ तुम्हॆं धॊबी मिल गया,
कपड़ॆ दिन मॆं सात जॊड़ी उतारती हॊ ॥
बताती रहती हॊ धौंस माई बाप की मुझॆ,
चमचॆ सॆ बॆलन सॆ झाड़ू सॆ मारती हॊ ॥
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सखी तरकीब तूनॆ नहीं है बताई मुझॆ,
प्रॆम-सौंदर्य कॊ कैसॆ तुम निखारती हॊ ॥
आतॆ हैं पिया पीकर…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on March 14, 2013 at 3:00am — 3 Comments
शिव पार्वती विवाह (खण्ड-काव्य) सॆ कुछ छन्द
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मत्तगयंद सवैया :-
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शारद, शॆष, सुरॆश दिनॆशहुँ, ईश कपीश गनॆश मनाऊँ ॥
पूजउँ राम सिया पद-पंकज, शीश गिरीश खगॆशहिं नाऊँ ॥
बंदउँ चारहु बॆद भगीरथ, गंग तरंगहिं जाइ नहाऊँ ॥
मातु-पिता-गुरु आशिष…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on March 9, 2013 at 9:30pm — 31 Comments
दुखीराम नॆ जब जब दीनानाथ के द्वार पर ख़ुशामद की,,,,नतीज़ा हर बार उनकी पत्नी की कोंख से कन्या रत्न की ही प्राप्ति हुई,,इस तरह शासकीय जन-गणना मॆं चार अंकॊं की बढ़ोत्तरी हो गईं,,,लेकिन दुखीराम की ख़ुशामद परॆड अब तो पहले से भी ज्यादा बढ़ गई,,,ख़ुशामद करनॆ के स्थान भी अनगिनत हो गये, भगवान तो भगवान अब दुखीराम पंडित, मौलवी, और तुलसी, नीम, पीपल, बरगद,सभी की ख़ुशामद करनॆ लगॆ,,,और आखिरकार इस बार दुखीराम की ख़ुशामद नें अपना रंग दिखाया,,और दुखीराम कॆ घर मॆं कुल का चिराग़ जगमगाया,, दुखीराम कॆ सारे दुख:…
ContinueAdded by कवि - राज बुन्दॆली on March 4, 2013 at 3:30am — 14 Comments
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