2122 2122 212
कौन कहता है खुशी मिट जाएगी?
हौसले से तीरगी मिट जाएगी।
है भरम बस धूल आँधी के समय,
शांत होते ही कमी मिट जाएगी।
चोर चोरी भी तो मिहनत से करे,
कर ले मिहनत, गंदगी मिट जाएगी।
एक होता दूसरे खातिर फिदा,
फिर कहा क्यों जिंदगी मिट जाएगी?
'बाल' कर अल्फ़ाज़ से तू दोस्ती,
तेरी तन्हा बेबसी मिट जाएगी।
मौलिक अप्रकाशित
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on March 29, 2021 at 7:34am — 2 Comments
तेरे सच्चे बयानों को यहाँ पर कौन समझेगा,
तेरे गम के निशानों को यहाँ पर कौन समझेगा?
यहाँ महलों से होती हैं हमेशा बात की कोशिश,
बता कच्चे मकानों को यहाँ पर कौन समझेगा।
हुई है कीमती नफ़रत, बनी व्यापार का सौदा,
मुहब्बत के ठिकानों को यहाँ पर कौन समझेगा।
बदलते पक्ष ये झट-से, फिसलते एक बोटी पर,
अडिग रह लें, उन आनों को यहाँ पर कौन समझेगा।
जिन्होंने 'बाल' सोचा था करें कुछ देश की खातिर,
शहीदों को व जानों को यहाँ पर कौन…
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on March 26, 2021 at 11:02pm — 8 Comments
2122 1212 22/112
देख लीजे ज़नाब बाकी है,
हर सफ़े का हिसाब बाकी है।
जब तलक इंतिसाब बाकी है,
तब तलक इंतिहाब बाकी है।
बर्क़-ए-शम से मिच मिचाए क्यों,
आना जब आफ़ताब बाकी है?
चंद अल्फ़ाज पढ़ के रोते हो,
पढ़ना पूरी क़िताब बाकी है।
रौंदने वाले कर लिया पूरा,
अपना लेकिन ख़्वाब बाकी है।
'बाल' अच्छा कहाँ यूँ चल देना,
जब कि काफ़ी शराब बाकी है।
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इंतिसाब: उठ खड़े होना।
इंतिहाब: लूटना,…
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on March 19, 2021 at 10:30pm — 3 Comments
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