दीवार के कान - लघुकथा –
शंकर सिंह एक अनुशासन प्रिय और जिम्मेवार अधिकारी थे। कारखाने में और कोलोनी में उनकी अच्छी छवि थी। लेकिन कल कारखाने में उनके साथ जो घटना हुई थी, उसने उनको विचलित कर दिया था। एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी से मामूली वार्तालाप ने एक उग्र झड़प का रूप ले लिया। यूनियन लीडर्स के बीच में आने से मामला कुछ ज्यादा ही तूल पकड़ गया। मि० सिंह से हाथापाई तक हो गयी। मैनेजमेंट ने तुरंत मि० सिंह को घर भेज दिया था। उनके आने के बाद प्रेस वाले, मीडिया वाले भी कारखाने तक आगये…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on March 16, 2017 at 2:34pm — 4 Comments
प्रतिशोध - लघुकथा –
"मोहन बाबू, पूरा मोहल्ला बाहर होली खेल रहा है। आप सारे परिवार के साथ घर में ही हैं"।
" सुखराम जी, हम लोग होली नहीं खेलते"।
"कोई खास कारण"?
"हाँ, कुछ ऐसा ही समझ लीजिये"।
"अगर बुरा ना लगे तो क्या मैं जान सकता हूँ"?
"पूरा मोहल्ला जानता है, आप भी जान जाओगे, अभी नये नये आये हो"।
"क्या आप को बताने में ऐतराज़ है"?
"ऐसी तो कोई बात नहीं है, आइये"।
दोनों पड़ोसी बैठ गये।
"सुखराम जी मेरी तीन बेटियाँ थीं। सबसे…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on March 13, 2017 at 6:30pm — 12 Comments
विश्व महिला दिवस - लघुकथा –
सुक्कू बाई आज फिर लेट हो गयी थी इसलिये डरते डरते मिसेज सिन्हा के घर में घुसी। सारा घर साफ़ सुथरा दिख रहा था। रसोईघर में सब वर्तन धुले हुए करीने से लगे थे। बाथरूम में देखा मैले कपड़ों का ढेर भी गायब था। लॉन में गयी तो देखा बाहर धुले कपड़े सूख रहे थे । उसने सोचा कि उसके रोज रोज लेट आने और नागा करने से परेशान होकर मैम साब ने दूसरी बाई रख ली।
मैम साब पूजा घर में थी। मैम साब बाहर निकली और सीधे रसोईघर में चली गयीं। थोड़ी देर बाद ट्रे में चाय और…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on March 9, 2017 at 1:02pm — 8 Comments
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