प्राण-पल
पेड़ से छूटे पत्ते-सा समय की आँधी में उड़ा
मैं हल्के-से तुम्हारे सामने था आ गिरा,
तुमने मुझे उठाया, देखा, परखा, मुझको सोचा,
जाने क्यूँ मुझको लगा
कि वह पल मेरी बाकी ज़िन्दगी से अलग
मेरा ज़्यादा अपना था, अधिक प्रिय…
ContinueAdded by vijay nikore on March 30, 2013 at 3:30pm — 20 Comments
नारी का मन
तुम समझ सकोगे क्या ? ...
कि मेरी झुकी समर्पित पलकों के पीछे
सदियों से स्वरहीन
मेरी मुरझाई आस्था आज…
ContinueAdded by vijay nikore on March 14, 2013 at 12:30pm — 22 Comments
(निराश को आशाप्रद करती रचना)
आगंतुक
Added by vijay nikore on March 11, 2013 at 12:00pm — 24 Comments
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