छंद झूलना
(२६ मात्रा, ७,७,७,५ पर यति , चार पद , अंत गुरु लघु )
गुरु ज्ञान दो, उत्थान दो, वंदन करो स्वीकार
अनुभव प्रवण, उज्ज्वल वचन, हे ईश दो आधार
तज काग तन, मन हंस बन, अनिरुद्ध ले विस्तार
प्रभु के शरण, जीवन- मरण, पाता सहज उद्धार.....
Added by Dr.Prachi Singh on April 23, 2013 at 11:00pm — 35 Comments
संप्रेषित शुभकामना, स्वजन करें स्वीकार
नव-संवत शुभ आगमन, सृष्टि सृजन त्यौहार
सृष्टि-सृजन त्यौहार, पुलक शुभ वर्ष मनाएँ
मनस चरित व्यवहार साध निज गौरव पाएं
संकल्पित हो कर्म, धर्म को करें प्रतिष्ठित
राष्ट्र करे उत्थान, भावना शुभ संप्रेषित
Added by Dr.Prachi Singh on April 10, 2013 at 8:30pm — 28 Comments
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