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वीनस केसरी's Blog – April 2013 Archive (5)

परेशां है समंदर तिश्नगी से - ग़ज़ल

परेशां है समंदर तिश्नगी से 

मिलेगा क्या मगर इसको नदी से



अमीरे शहर उसका ख़ाब देखे  

कमाया है जो हमने मुफलिसी से

 …

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Added by वीनस केसरी on April 25, 2013 at 10:00pm — 12 Comments

किसी दिन मर न जाएँ हम खुशी से - वीनस

मुलाकातें हमारी, तिश्नगी से

किसी दिन मर न जाएँ हम खुशी से



महब्बत यूँ मुझे है बतकही से

निभाए जा रहा हूँ खामुशी से



उन्हें कुछ काम शायद आ पड़ा है

तभी मिलते हैं मुझसे खुशदिली से



उजाला बांटने वालों के सदके

हमारी निभ रही है तीरगी से



ये कैसी बेखुदी है जिसमे मुझको

मिलाया जा रहा हैं अब मुझी से



उतारो भी मसीहाई का चोला

हँसा बोला…

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Added by वीनस केसरी on April 19, 2013 at 12:14am — 16 Comments

इंसान

जीतने के सौ तरीके खोजने वाले,

ग्लूकान-डी के सहारे

सूरज से लड़ने वाले हम इंसान

उजले सच को भी बर्दाशत नहीं कर पाते



प्रकृति पर विजय की लालसा लिए,

हम इंसान

पर्वत विजय का जश्न मनाते हैं,

इंगलिश चैनल को तैर कर पार करते हैं,

भू-गर्भ की गहराइयों को 'मीटर' में नापते हैं, 

'मीटर' के ऊपर के सारे पैमाने जाने कहाँ चले जाते हैं उस समय !!!



चाहते हैं,

चाँद पर खेती करें,

मंगल पर पानी मिल जाए,

नए तारों की खोज में ,

हमने…

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Added by वीनस केसरी on April 12, 2013 at 12:52am — 10 Comments

सच मन को आहत करता है - वीनस केसरी

सच बोलने वालो

तुमको हमेशा सूली पर लटकाया गया

मगर यह गलत कहाँ है

तुम्हारे कारण

आहत होती हैं कितनी भावनाएँ,

शून्य से शिखर तक पहुँचते-पहुँचते

कितने शीशे टूट जाते है



सच बोलने वालो

तुम अलगाव वादी हो   

तुमसे बर्दाशत नहीं होती

अखंडता की भावना

तुम्हें मसीहाई सूझती है

तुम्हें अप्राकृतिक सुन्दर अट्टालिकाएँ नहीं दिखतीं

केवल भूखे लोग दीखते हैं

जोर से बोलने पर

सच भी जोरदार माना जा रहा है

तारे भी सूरज है…

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Added by वीनस केसरी on April 9, 2013 at 5:00pm — 5 Comments

नई कविता - वीनस केसरी

नई कविता जो आज रात पुरानी हो गई



मैं चाहता था

ख़्वाब मखमली हों और उनमें परियां आएँ

सूरज की तरह किस्मत हर दिन चमकदार हो

और जब सलोना चाँद रास्ता भटक जाए,

तो तारों से राह पूछने में उसे शर्म न लगे

 

ये भी चाहा कि,

मैं पूरी शिद्दत से किसी को पुकारूं

और वो मुड कर मुझे देख कर मुस्कुराए  

हम सुलझते सुलझते, थोडा सा फिर उलझ जाएँ

प्यार करते करते लड़ पड़ें

और…

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Added by वीनस केसरी on April 9, 2013 at 3:11am — 10 Comments

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"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
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