“गुरु देव !”
“हाँ बोलो बेटा !”
“लेखन में आपने बहुत कुछ सिखा दिया पर !”
“पर क्या ?”
“पर लगता है आप कहीं चूक गए !”
“अच्छा ! कैसे और तुम्हे ऐसा क्यों लगा ?”
“मेरे लेखन मैं वो बात नहीं आ पा रही है !”
अब गुरु जी थोड़ी देर तक सोचते रहे और तभी एक आवाज़ आई ...पटाक !
शिष्य का गाल लाल हो चुका था , आँख के आगे तारे दिखाई देने लगे .
“अब बोलो बेटा !”
“जी ,समझ गया गुरूजी, बस यही ‘झन्नाटा’ नहीं आ पा रहा था !”
© हरि प्रकाश…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on April 19, 2015 at 9:30pm — 10 Comments
“आपकी लड़की हमको बहुत पसंद है !”
“ बहुत –बहुत शुक्रिया आप दोनों का !”
“ बस बहन जी, थोडा लेन- देन की बात भी...!”
“हाँ-हाँ क्यों नहीं, भाई-साहब, बहन जी बताइये- बताइये ?”
“ अरे आप तो जानती हीं हैं आजकल का चलन, और फिर मेरा लड़का अच्छा खासा सरकारी इंजीनीयर है , कम से कम ४० लाख नकद और एक गाडी तो बनती ही है !” …
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on April 15, 2015 at 9:43pm — 10 Comments
एक पतंग
भर रही थी
बहुत ऊँची उड़ान
विस्तृत गगन में
जैसे, जाना चाहती हो
आसमान को चीरती, अंतरिक्ष में
लहराती, बलखाती, स्वंय पर इठलाती
दे ढील दे ढील, सभी एक स्वर में चिल्ला रहे थे !
कई चरखियाँ
खत्म हो गयीं
सद्दीयों के गट्टू
मान्झों के गट्टू
गाँठ, बाँध-बाँध कर
एक के बाद एक ऐसे जोड़े गए
जैसे ये अटूट बंधन है ,कभी नहीं टूटेगा
वो काटा, वो काटा पेंच पर पेंच लडाये जा रहे थे !
तालियाँ…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on April 6, 2015 at 1:59am — 7 Comments
“ कवि सम्मलेन का भव्य आयोजन हो रहा था, सभागार श्रोताओं से खचाखच भरा हुआ था , देश के कई बड़े कवि मंच पर उपस्तिथ थे, मंच संचालक महोदय बार –बार निवेदन कर रहे थे की अपनी सर्वश्रेष्ठ रचना का पाठ करें, इसी श्रृंखला में उन्होंने कहा, अब मैं आमंत्रित करता हूँ, आप के ही शहर से आये हुए श्रधेय कवि विद्यालंकार जी का, तालियों से सभागार गूँज उठा !”
“तभी मंच संचालक महोदय ने उनके कान में कहा ‘सर कृपया १५ मिनट से ज्यादा समय मत लीजियेगा’ !”
“विद्यालंकार जी ने मंच पर आसीन कवियों एवम् श्रोताओं से…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on April 1, 2015 at 12:53am — 2 Comments
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