“आपकी लड़की हमको बहुत पसंद है !”
“ बहुत –बहुत शुक्रिया आप दोनों का !”
“ बस बहन जी, थोडा लेन- देन की बात भी...!”
“हाँ-हाँ क्यों नहीं, भाई-साहब, बहन जी बताइये- बताइये ?”
“ अरे आप तो जानती हीं हैं आजकल का चलन, और फिर मेरा लड़का अच्छा खासा सरकारी इंजीनीयर है , कम से कम ४० लाख नकद और एक गाडी तो बनती ही है !”
“ अरे बस , मैं तो अपनी बिटिया के लिए कुछ ज्यादा ही सोच कर बैठी हूँ !”
“ अरे वाह , कितना .. लड़के के पिता चहकते हुए बोले !”
“ जी, मुझे तो सिर्फ ८० लाख नकद चाहिए, अब देखिये ना इसके पिता भी नहीं हैं, कितनी बड़ी डॉक्टर है , फिर जहां जायेगी अपने परिवार को जिंदगी भर कमा कर देगी , पर हाँ मेरा बुढ़ापा जरूर ठीक से कट जाएगा, और चलिए आप के लिए वो ४० लाख और गाडी का पैसा कम ..पर कम से कम ३० लाख तो मुझे चाहिये ही, अब बताइये सौदा मंजूर हो तो .. ?”
© हरि प्रकाश दुबे
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
बहुत अच्छी लघुकथा
बहुत सुंदर, आदरणीय हरिप्रकाश जी. काश! ऐसा करारा जबाब ,हर लड़की का पिता देना सीख ले. बधाई प्रस्तुति पर
वाह ... करारा जवाब। सुंदर संदेशप्रद लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई ॥
लाजवाब करने वाला जवाब मिला है । आदरणीय हरि भाई आपको कथा के लिये दिली बधाइयाँ ।
जैसे को तैसा मिला..
बहुत खूब !
आ० हरी प्रकाश जी
आपने कटाक्ष बहुत अच्छा किया है i सादर.
बहुत बढ़िया कहानी , हार्दिक बधाई आपको |
आज कल लड़कीवालों को इसी तरह बोलने की जरुरत है । बढ़िया लघुकथा आदरणीय..
अच्छा सौदा है ...काश ऐसे बोल हमारे समाज से लड़कीवालों के मुख से निकलने लगे....
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