1. रोशनी ....
क्या ज़मीं
क्या आसमां
हर तरफ
चटख़ धूप है
सहर से सांझ तक
उजालों की बारिश है
बस, तुम आ जाओ
कि मेरी तारीकियों को
रोशनी मिले //
२. यकीन ....
चटख धूप में भी
अब्र चैन नहीं लेते
आधी सी धूप में
आधी सी बारिश है
जैसे अधूरी सी ज़िंदगी की
अधूरी से ख्वाहिश है
सबा भी बेसब्र नज़र आती है
लगता है कोई रूठा पल
मिलन को बेकरार है
शायद कोई वादा
मेरी तन्हाई में
आरज़ू-ऐ-शरर बन के…
Added by Sushil Sarna on April 28, 2016 at 2:27pm — 6 Comments
हौले हौले-(ग़ज़ल - एक प्रयास)
बहर -२२ २२ २२ २
हौले हौले रात चली
हौले हौले बात चली !!१!!
हौले हौले होंठ हिले
हौले से बरसात चली !!२!!
हौले हौले आँखों में
प्यासी प्यासी रात चली !!३!!
हौले हौले जीत हुई
आलिंगन की बात चली !!४!!
हौले हौले ख़्वाबों की
आँखों से बरसात चली !!५!!
हौले हौले आँखों से
जागी जागी रात चली !!६!!
हौले हौले वो महकी
जुगनू की बारात चली !!७!!
सुशील सरना…
Added by Sushil Sarna on April 27, 2016 at 4:40pm — 15 Comments
सुधि आँगन ....
याद आये वो बैन तुम्हारे
तृषित नयनों का सिंगार हुआ
संग समीर के
उलझी अलकें
स्मृति कलश से फिर
छलकी पलकें
याद आये वो अधर तुम्हारे
फिर मूक पल हरसिंगार हुआ
स्मृति मेघों की
निर्मम गर्जन
देह कम्पन्न का
करती अभिनन्दन
याद आये वो स्पर्श तुम्हारे
आलिंगन क्षण अंगार हुआ
जब देह से देह की
गंध मिली
तब स्वप्निल पवन
मकरंद चली
याद आये…
ContinueAdded by Sushil Sarna on April 26, 2016 at 9:41pm — 8 Comments
Added by Sushil Sarna on April 22, 2016 at 10:03pm — 11 Comments
ज़िंदगी डूब जाती है ....
ऐ बशर !
इतना ग़रूर अच्छा नहीं
ये दौलत का सुरूर अच्छा नहीं
साया तेरे करमों का
हर कदम तेरे साथ है
कुछ दूर तक दिन है
फिर लम्बी अंधेरी रात है
रातों में साये भी रूठ जाते हैं
दिन के करम
तमाम शब सताते हैं
शब की तारीकियों में
अहम के पैराहन
जिस्म से उतर जाते हैं
ज़न्नत और दोज़ख
सब सामने आ जाते हैं
बशर ख़ाके सुपुर्द हो जाता है
लाख चाहता है
फिर लौट नहीं पाता है
फिर न कोई रहबर होता…
Added by Sushil Sarna on April 19, 2016 at 9:48pm — 4 Comments
आईने तो आईने हैं ...
क्यूँ ,आखिर क्यूँ
आईनों से बात करते हो
ये करीबियां ये दूरियां
सब फ़िज़ूल हैं
कांच के टुकड़ों की तरह
टूटे हुए ज़ज़्बात
कब जुड़ पाते हैं
गर्द की आंधियां
ज़र्द पत्तों पर ही कहर ढाती हैं
बेज़ान जिस्मों पर
कब कोई तरस खाता है
बेमन से ही सही
हर कोई उसे ख़ाके सुपुर्द कर जाता है
कुछ भी तो हासिल न होगा
यूँ अपने अक्स से बात करके
हर सवाल मुंह चिढ़ाएगा
हर जवाब मुहं मोड़ जाएगा
आँखों का भीगापन…
Added by Sushil Sarna on April 12, 2016 at 9:49pm — 2 Comments
कुछ लम्हे ....
वो कुछ लम्हे
जो हमने मिलकर
अपनी झोली फैलाकर
ख़ुदा की हर चौखट पर
सर झुकाकर
मांगे थे //
वो कुछ लम्हे
जो हमारे ज़हन में
आज तक
इक दूसरे के वास्ते
वक्ते इज़हार के इंतज़ार में
ज़िंदा हैं //
वो कुछ लम्हे
जो हम दोनों ने
दो जिस्म इक जां
हो जाने के लिए मांगे थे
अब जब वो लम्हे
हमें नसीब हुए
तुम उनसे विमुख होने का सोच रही हो
अपनी ही आरज़ुओं का
अजन्मे ही गला घोंट…
Added by Sushil Sarna on April 12, 2016 at 2:01pm — 2 Comments
वही नर्म अहसास ....
वही नर्म अहसास
किसी सुर्ख शफ़क़ से
पलकों की खिड़की में
यादों की शरर बन
जाने कब
मेरी रूह में उतर गए//
वही नर्म अहसास
मेरी तन्हाईयों को
मुझसे लिपट
मेरी करवटों को
ख़ुशनुमा सुरों से सजा
मेरी हयात को
जीने की अदा दे गए//
वही नर्म अहसास
फिर किसी गुजरे लम्हे से निकल
दिल के करीब यूँ हंसे
मानो फ़िज़ाओं ने हौले से
अपनी पाज़ेब छनकाई हो
शोखियों में डूबी
जैसे कोई…
Added by Sushil Sarna on April 6, 2016 at 9:00pm — 2 Comments
पी लेने दो ... (एक प्रयास एक ग़ज़ल )
२२ २२ २२ २२
इक लम्हा तो जी लेने दो
अब जी भर के पी लेने दो !!१!!
एक कतरा है पैमाने में
खो के हस्ती पी लेने दो !!२!!
आये न कभी अब होश हमें
अब लब अपने सी लेने दो !!३!!
दम घुटता है अब यादों का
अब शब को भी जी लेने दो !!४!!
जाने कैसा तूफां है ये
हाँ मिट कर फिर जी लेने दो !!५!!
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on April 1, 2016 at 5:26pm — 10 Comments
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