For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रामबली गुप्ता's Blog – April 2016 Archive (6)

कविता-प्रियतम की याद में

प्रियवर! अब तुम आन मिलो ।

सच में अब तुम आन मिलो ।।



तुम बिन भटकूँ मै बन पगली ।

हुई जिन्दगी जल बिन मछली ।।

रात चाँदनी आये जब-जब ।

मन की अगन बढ़ाये तब-तब ।।

दिन का दूजा नाम उदासी ।

हुई तिहाई तन से दासी ।।

नैना हर पल बाट तके हैं ।

विरह वेदना सह न सके हैं ।।

पर यादों में आते जब तुम ।

मन को बड़ा रिझाते तब तुम ।।

किन्तु चेतना लौटे ज्योंही ।

बिलख हृदय रो बैठे त्योंही ।।

नैन धैर्य खो देते हैं तब ।

अश्रु कपोल धो देते हैं तब… Continue

Added by रामबली गुप्ता on April 21, 2016 at 10:37am — 2 Comments

अतुकांत-तुम तो न जानते थे न महात्मन्!

हे महात्मन्!

हे वयोवृद्ध!

तेरी मृतात्मा सुने!

राम-गौतम की इस भूमि पर

अब वटवृक्ष छोड़,

उसकी टहनियों को

पूजा जायेगा।

तूने जो किये थे,

निः स्वार्थ कृत्य,

कर विस्मृत उन्हें,

बस तेरी कमियों को ही

उकेरा जायेगा।

इस सत्य-भूमि पर,

सत्यता को झुठलाकर

इतिहास को ही

तोड़ा मरोड़ा जायेगा,

तेरी रीतियों-नीतियों की

प्रबुद्ध आवाज को

अब अहिंसात्मक असहिष्णुता

बोला जायेगा।

जिन घटितों का तुझसे

दूर तक रिश्ता… Continue

Added by रामबली गुप्ता on April 13, 2016 at 2:15pm — 2 Comments

गीत-आज प्रिये कुछ कहना चाहूँ।

आज प्रिये! कुछ कहना चाहूँ, हिय में तेरे रहना चाहूँ।

तेरे तन-मन में खोया मैं खोया ही अब रहना चाहूँ।।

आज प्रिये! कुछ.........



निज नृग-से न्यारे नयनों में अंजन-सा मुझे रचा लो तुम।

उलझा लो कुंचित-केशों में या गजरा मुझे बना लो तुम।।

अधरों की लाली बन प्यारी मैं अधर-सुधा पा लेना चाहूँ।

आज प्रिये! कुछ............



कानों का कुंडल बन जाऊँ या उर का हार बना लो तुम।

बन जाऊँ छम-छम पायल मैं या कंगन मुझे बना लो तुम।

नथ की नथिया बन सजनी मैं चूम होठ को लेना… Continue

Added by रामबली गुप्ता on April 8, 2016 at 10:01am — 1 Comment

रचना-शृंगारिक

लच-लचक-लचक लचकाय चली,

कटि-धनु से शर बरसाय चली।

कजरारे चंचल नयनों से,

हिय पर दामिनि तड़पाय चली।।1।।



फर-फहर फहर फहराय चली,

लट-केश-घटा बिखराय चली।

अलि मनबढ़ सुध-बुध खो बैठे,

अधरों से मधु छलकाय चली।।2।।



सुर-सुरभि-सुरभि सुरभाय चली,

चहुँ ओर दिशा महकाय चली।

चम्पा-जूही सब लज्जित हैं,

तन चंदन-गंध बसाय चली।।3।।



लह-लहर-लहर लहराय चली,

तन से आँचल सरकाय चली।

नव-यौवन-धन तन-कंचन से,

रति मन में अति भड़काय… Continue

Added by रामबली गुप्ता on April 5, 2016 at 11:00am — 12 Comments

गीत-हृदय का भ्रमर गुनगुनाता चला है।

हृदय का भ्रमर गुनगुनाता चला है।

नया सुर अधर पर सजाता चला है।

हृदय का भ्रमर.............



उजड़ जो गयी एक बगिया हुआ क्या,

बगीचे नए भी यहीं पर मिलेंगे।

नई नित्य कलियाँ सजाएंगी उपवन,

नए पुष्प अमृत-कलश ले खिलेंगे।

यही सोंचकर गीत गाता चला है।

हृदय का भ्रमर.............



तिमिर रात्रि का कब सदा ही रहेगा?

दिवा के उजाले भी चहुँ ओर होंगे।

नवोदित किरन तम का चीरेगी सीना,

प्रभा से प्रकाशित सकल वस्तु होंगे।

हृदय-तम में दीपक जलाता चला… Continue

Added by रामबली गुप्ता on April 4, 2016 at 10:30am — 14 Comments

गीत- भावना के वाह को अब रोक लो

भावना के वाह को अब रोक लो तुम।

कहो कुछ भी किन्तु पहले सोंच लो तुम।।

भावना के वाह...........



शब्द-शर मुख से निकल ना लौटता है।

सालता तन-बदन हिय को घोंटता है।

कर न दें आहत किसी को शब्द तेरे,

हे! सखे! रुककर जरा यह सोंच लो तुम।

भावना के वाह.............



मान देकर हृदय सबका जीत तो लो।

शब्द-मधु बरसा उरों को सींच तो लो।

मान दोगे मान पावोगे सदा ही,

बोल मीठे बोल दो तो बोल लो तुम।

भावना के वाह...........



है बड़ा कोई यहाँ छोटा… Continue

Added by रामबली गुप्ता on April 2, 2016 at 5:32am — 10 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . निर्वाण

दोहा दशम्. . . . निर्वाणकौन निभाता है भला, जीवन भर का साथ ।अन्तिम घट पर छूटता, हर अपने का हाथ ।।तन…See More
57 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service