दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलि
गंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर ।
कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे डोर ।।
अलिकुल की गुंजार से, सुमन हुए भयभीत ।
गंध चुराने आ गए, छलिया बन कर मीत ।।
आशिक भौंरे दिलजले, कलियों के शौकीन ।
क्षुधा मिटा कर दे गए, घाव उन्हें संगीन ।।
पुष्प मधुप का सृष्टि में, रिश्ता बड़ा अजीब ।
दोनों के इस प्रेम को, लाती गंध करीब ।।
पुष्प दलों को भा गई, अलिकुल की गुंजार ।
मौन समर्पण कर…
Added by Sushil Sarna on April 27, 2024 at 1:51pm — 2 Comments
दोहा पंचक . . . .
( अपवाद के चलते उर्दू शब्दों में नुक्ते नहीं लगाये गये )
टूटे प्यालों में नहीं, रुकती कभी शराब ।
कब जुड़ते है भोर में, पलक सलोने ख्वाब ।।
मयखाने सा नूर है, बदन अब्र की बर्क ।
दो जिस्मों की साँस का, मिटा वस्ल में फर्क ।।
प्याले छलके बज्म में, मचला ख्वाबी नूर ।
निभा रहे थे लब वहीं, बोसों का दस्तूर ।।
महफिल में मदहोशियाँ, इश्क नशे में चूर ।
परवाने को देखकर , हुस्न हुआ मगरूर…
Added by Sushil Sarna on April 24, 2024 at 5:37pm — 2 Comments
दोहा दशम . . . . . . रोटी
कैसे- कैसे रोटियाँ, दिखलाती हैं रंग ।
रोटी से बढ़कर नहीं,इस जीवन में जंग ।।
रोटी के संघर्ष में, जीवन जाता बीत ।
अर्थ चक्र में गूँजता , रोटी का संगीत ।।
रोटी का संसार में, कोई नहीं विकल्प ।
बिन रोटी के बीतता ,हर पल जैसे कल्प ।।
रोटी से बढ़कर नहीं, दुनिया में कुछ यार ।
इसके आगे दौलतें , इस जग की बेकार ।।
दो रोटी ने दोस्तो , क्या - क्या दिये अजाब ।
मुफलिस की तकदीर का, रोटी…
Added by Sushil Sarna on April 20, 2024 at 2:11pm — 2 Comments
याद कर इतना न दिल कमजोर करना
आऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।
मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरी
कह दूं मैं, बस रोक दे वो शोर करना।
पंक्तियों के बीच पढ़ना आ गया है
भूल बैठा हूं मैं अब इग्नोर करना।
ये नजर अब आपसे हटती नहीं है
बंद करिए तो नयन चितचोर करना।
याद बचपन की न जाती है जेहन से
अब अखरता खुद को ही मेच्योर करना।
आज को जैसे वो जीना भूल बैठे
बस उन्हें धुन अपना कल सेक्योर…
ContinueAdded by मिथिलेश वामनकर on April 13, 2024 at 10:33pm — 7 Comments
२१२२ २१२२
ग़मज़दा आँखों का पानी
बोलता है बे-ज़बानी
मार ही डालेगी हमको
आज उनकी सरगिरानी
आपकी हर बात वाजिब
और हमारी लंतरानी
जाने किसकी बद्दुआ है
वक़्त-ए-गर्दिश जाँ-सितानी
दर्द-ओ-ग़म रास आ रहे हैं
बुझ रही है ज़िंदगानी
कौन जाने कब कहाँ से
आये मर्ग-ए-ना-गहानी
ले के फागुन आ गया फिर
फ़स्ल-ए-गुल की छेड़खानी
कैसे मैं समझाऊँ ख़ुद…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on April 1, 2024 at 5:30pm — 6 Comments
"ओबीओ परिवार के सभी सदस्यों को ओबीओ की 14वीं सालगिरह मुबारक हो"
ग़ज़ल
212 212 212
इल्म की रौशनी ओबीओ
रूह की ताज़गी ओबीओ (1)
तुझ से मंसूब करता हूँ मैं
अपनी ये शाइरी ओबीओ (2)
तेरे बिन है अधूरी बहुत
ये मेरी ज़िंदगी ओबीओ (3)
मेरा दिल मेरी चाहत है तू
जानते हैं सभी ओबीओ (4)
चाहने वाले तेरे मिले
हर नगर हर गली ओबीओ …
ContinueAdded by Samar kabeer on April 1, 2024 at 1:51pm — 12 Comments
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