========ग्रीष्म=========
सूर्य गरजता गगन से, गिरा गर्म अंगार
धधके धूं धूं कर धरा, सूखी सरिता धार
मचले मनु मन मार, मगर मिलता क्या पानी
ठूंठ ठूंठ हर ठौर, ग्रीष्म की गज़ब कहानी
उड़ा उड़ा के धूल, लपट लू आंधी चलती
बंजर होते खेत, आह आँखें है भरती
रिक्त हुए अब कूप भी, ताल गए सब हार
सूर्य गरजता गगन से, गिरा गर्म अंगार
पेड़ पौध परजीव , पथिक पक्षी पशु प्यासे
मृग मरीचिका देख, मचल पड़ते मनु…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on May 31, 2013 at 7:30pm — 19 Comments
चीन ने भारतीय सीमा के अन्दर घुसकर ५ किलोमीटर लम्बी सड़क बनाई....तब कवि को लेखनी उठानी पड़ती है.......जागरण के लिए.....
1
भारती महान किन्तु अन्धकार का वितान, है अमा समान ज्ञान का नहीं प्रसार है
द्रोह वृद्धि की कमान, भ्रष्टनीति की मचान, क्यों सजी हुई कि स्वाभिमान तार तार है
मानवीयता न ध्यान, पाप पुण्य व्यर्थ मान, दानवी मनुष्य का मनुष्य पे प्रहार है
धर्म का रहा न मान, रुग्ण आँख नाक कान, शत्रु का लखो विवेक नाश हेतु वार है
2
क्यों नपुन्सकी प्रवृत्ति का…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Vajpeyee on May 27, 2013 at 10:38am — 16 Comments
हम अपने अपने हिस्से का पानी लिए जिए जा रहें है...
देह में मचलता हुआ, लहू में बहता हुआ
और लोग जो अपनों के साथ हर सुख दुःख मे ढल जाते हैं
हर उस आकार में जिसमें
उस घडी उनका अपना उन्हें होना देखना चाहता है
वह उनके लिए पानी सा हो जातें है .......
तो है न यह अपनों का संसार|
फिर तुम मैं
कहाँ .... दो किनारों से
अपने अपने हिस्से के पानी के साथ बढते हुए, उन्हें थामे हुए|
कभी न मिलने के लिए|
और मैं हर…
ContinueAdded by डॉ नूतन डिमरी गैरोला on May 21, 2013 at 12:30pm — 15 Comments
ज़िन्दगी की दौड़ में आगे निकलने के लिए ,
आदमी मजबूर है खुद को बदलने के लिए ।
सिर्फ कहने के लिए अँगरेज़ भारत से गए ,
अब भी है अंग्रेजियत हमको मसलने के लिए ।
हाथ में आका के देकर नोट की सौ गड्डियां ,
आ गये संसद में कुछ बन्दर उछलने के लिए ।
गुम गयीं…
Added by Abhinav Arun on May 14, 2013 at 2:05pm — 55 Comments
सूखा !
मही मधुरी कब से तरस रही ,
बुझी न कभी एक बूँद से तृषा ,
घनघोर घटाएँ लरज लरज कर ,
आयी और बीत चली प्रातृषा .
ईख की जड़ में दादुर बैठे ,
आरोह अवरोह में साँस चले ,
पानी की अहक लिये जलचर ,
ताल हैं शुष्क सबके प्राण जले .
पथिक राह चले बहे स्वेदकण ,
पथतरू* से प्यास बुझाए मजबूरन , * traveller’s tree
दूर कोई आवाज़ बुलाए कल् कल्…
Added by coontee mukerji on May 9, 2013 at 10:30pm — 14 Comments
(1)
कब मैंने तुमसे
वादा किया था कोई
अपने को मैंने कब बंधन में बाँधा
जो किया , तुमने ही किया
हर सुबह आलस्य तजकर
पूजा की थाल सजा
अरूणोदय होता तेरे दर्शन से .
(2)
मिथ्या लगी
जग की सारी बातें
जब मैंने तुमसे प्रीत की
अब क्रोध करूँ या मान करूँ
या करूँ अपने आप पर दया
रीति रिवाजों के नाम पर
खींच दी तुमने सिंदूर की लम्बी रेखा
भाग्य ने लिख दी माथे पर मृत्युदण्ड
चेहरे पर घूँघट खींचकर .
(3)…
Added by coontee mukerji on May 2, 2013 at 11:30am — 17 Comments
तुमको जो प्रतिकूल लगे हैं
वे हमको अनुकूल लगे
और तुम्हें अनुकूल लगे जो
वे हमको प्रतिकूल लगे...............
हम यायावर,जान रहे हैं…
Added by अरुण कुमार निगम on May 2, 2013 at 10:27am — 41 Comments
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