तुफानों से लड़ कर ,चूर - चूर हो जिंदा थी
बेकल ,चंचल, निर्जन ,निष्प्राण वो बिंदा थी
किसके लिये अखिल व्योम से मोती चुराये
आई थी मधु छाया आस मधुमास लिये
लहरों पर चलने वाली अहम से हारी थी
साहिल की निठुरता बेबस से टकराई थी
अंतर्मन में सुलगती , भटकती भ्रान्त- सी
औचित्यहीन कामनायें ज्वलित कान्त - सी
हरियाली छाहों तले स्पंदित वो जिंदा थी
इतराई सागर पर बौराई विस्मित वो बिंदा…
ContinueAdded by kanta roy on May 24, 2016 at 11:22am — 6 Comments
Added by kanta roy on May 17, 2016 at 4:57pm — 8 Comments
Added by kanta roy on May 15, 2016 at 11:39am — 9 Comments
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