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गिरिराज भंडारी's Blog – May 2017 Archive (6)

ग़ज़ल - हम चाह कर ख़ुदा की इबादत न कर सके ( गिरिराज भंडारी )

221  2121  1221 212

हो चाह भी, तो कोई ये हिम्मत न कर सके

तेरी जफ़ा की कोई शिकायत न कर सके

 

तुम क़त्ल करके चौक में लटका दो ज़िस्म को

ता फिर कोई  भी शौक़ ए बगावत न कर सके

 

हाल ए तबाही देख तेरी बारगाह की  

हम जायें बार बार ये हसरत न कर सके

बारगाह - दरबार

मैंने ग़लत कहा जिसे, हर हाल हो ग़लत

तुम देखना ! कोई भी हिमायत न कर सके

 

बन्दे जो कारनामे तेरे नाम से किये

हम चाह कर ख़ुदा की इबादत न कर…

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Added by गिरिराज भंडारी on May 17, 2017 at 7:24am — 27 Comments

ग़ज़ल - जाने किस किस से तेरी अनबन हो ( गिरिराज भंडारी )

2122   1212   22 /112

मेरी मदहोशियाँ भी ले जाना

मेरी हुश्यारियाँ भी ले जाना

 

इक ख़ला रूह को अता कर के

आज तन्हाइयाँ भी ले जाना 

 

जाने किस किस से तेरी अनबन हो

थोड़ी खामोशियाँ भी ले जाना

 

दिल को दुश्वारियाँ सुहायें गर

मुझसे तब्दीलियाँ भी ले जाना

 

कामयाबी न सर पे चढ़ जाये

मेरी नाकामामियाँ भी ले जाना

 

राहें यादों की रोक लूँ पहले

फिर तेरी चिठ्ठियाँ भी ले जाना

 

बे…

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Added by गिरिराज भंडारी on May 15, 2017 at 10:19am — 23 Comments

ग़ज़ल - इब्न ए मरियम हैं, तो शिफ़ा करिये ( गिरिराज भंडारी )

( दूसरे शेर के ऐब ए तनाफुर को कृपया स्वीकार करें )

2122  1212   22/112

ज़ह’नियत यूँ न बरहना करिये

अपने जामे में ही रहा करिये

 

आब ठंडक ही दे हमें हरदम     

आग, गर्मी ही दे दुआ करिये

 

बेवफा हो गये हैं जो साबित    

उनसे क्या खा के अब वफ़ा करिये

 

जुगनुओं की चमक चुरायी है  

शम्स ख़ुद को न अब कहा करिये

 

सिर्फ बीमार कह के चुप न रहें

इब्न ए मरियम हैं, तो शिफ़ा…

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Added by गिरिराज भंडारी on May 10, 2017 at 8:00am — 12 Comments

ग़ज़ल - क्या कज़ा को हयात कहता है ? ( गिरिराज भंडारी )

2122  1212  22 /112

क़ैद को क्यों नजात कहता है

क्या कज़ा को हयात कहता है ?

 

तीन को अब जो सात कहता है

बस वही ठीक बात कहता है

 

क्यूँ न तस्लीम  उसको कर लूँ मैं

वो मिरे दिल की बात कहता है

 

कैसे कह दूँ कि वास्ता ही नहीं

रोज़ वो शुभ प्रभात कहता है

 

ऐतराज उसको है शहर पे बहुत

हाथ अक्सर जो हात कहता है

 

उसकी बीनाई भी है शक से परे   

जो सदा दिन को रात कहता है

 

जीत जब…

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Added by गिरिराज भंडारी on May 8, 2017 at 10:00am — 21 Comments

दो अतुकांत - वैचारिक रचनाएँ ( गिरिराज भंडारी )

1- आंतरिक सम्बन्ध

**************

मैंने पीटा तो दरवाज़ा था

हिल उठी साँकल ...

खड़ खड़ कर के .... 

और..

आवाज़ अन्दर से आयी

कौन है बे.... ?

बस...

मै समझ गया

तीनों के आंतरिक सम्बन्धों को

******

 2- आग और पानी

*****************

आग बुझे या न बुझे

आग लग जाना दुर्घटना है, या साजिश

किसे मतलब है

इन बेमतलब के सवालों से

 

ज़रूरी है,  अधिकार ....

पानी पर

सारा झगड़ा इसी…

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Added by गिरिराज भंडारी on May 6, 2017 at 9:00am — 12 Comments

ग़ज़ल - मिरा गिरना किसी की है मसर्रत - ( गिरिराज )

1222    1222    122

है तर्कों की कहाँ.. हद जानता हूँ

मुबाहिस का मैं मक़्सद जानता हूँ

 

करें आकाश छूने के जो दावे

मैं उनका भी सही क़द जानता हूँ

 

बबूलों की कहानी क्या कहूँ मैं

पला बरगद में, बरगद जानता हूँ

 

बदलता है जहाँ, पल पल यहाँ क्यूँ

मै उस कारण को शायद जानता हूँ

 

पसीने पर जहाँ चर्चा हुआ कल

वो कमरा, ए सी, मसनद जानता हूँ

 

यक़ीनन कोशिशें नाकाम होंगीं

मै उनके तीरों की जद,…

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Added by गिरिराज भंडारी on May 1, 2017 at 11:00am — 22 Comments

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