221 2121 1221 212
हो चाह भी, तो कोई ये हिम्मत न कर सके
तेरी जफ़ा की कोई शिकायत न कर सके
तुम क़त्ल करके चौक में लटका दो ज़िस्म को
ता फिर कोई भी शौक़ ए बगावत न कर सके
हाल ए तबाही देख तेरी बारगाह की
हम जायें बार बार ये हसरत न कर सके
बारगाह - दरबार
मैंने ग़लत कहा जिसे, हर हाल हो ग़लत
तुम देखना ! कोई भी हिमायत न कर सके
बन्दे जो कारनामे तेरे नाम से किये
हम चाह कर ख़ुदा की इबादत न कर…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on May 17, 2017 at 7:24am — 27 Comments
2122 1212 22 /112
मेरी मदहोशियाँ भी ले जाना
मेरी हुश्यारियाँ भी ले जाना
इक ख़ला रूह को अता कर के
आज तन्हाइयाँ भी ले जाना
जाने किस किस से तेरी अनबन हो
थोड़ी खामोशियाँ भी ले जाना
दिल को दुश्वारियाँ सुहायें गर
मुझसे तब्दीलियाँ भी ले जाना
कामयाबी न सर पे चढ़ जाये
मेरी नाकामामियाँ भी ले जाना
राहें यादों की रोक लूँ पहले
फिर तेरी चिठ्ठियाँ भी ले जाना
बे…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on May 15, 2017 at 10:19am — 23 Comments
( दूसरे शेर के ऐब ए तनाफुर को कृपया स्वीकार करें )
2122 1212 22/112
ज़ह’नियत यूँ न बरहना करिये
अपने जामे में ही रहा करिये
आब ठंडक ही दे हमें हरदम
आग, गर्मी ही दे दुआ करिये
बेवफा हो गये हैं जो साबित
उनसे क्या खा के अब वफ़ा करिये
जुगनुओं की चमक चुरायी है
शम्स ख़ुद को न अब कहा करिये
सिर्फ बीमार कह के चुप न रहें
इब्न ए मरियम हैं, तो शिफ़ा…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on May 10, 2017 at 8:00am — 12 Comments
2122 1212 22 /112
क़ैद को क्यों नजात कहता है
क्या कज़ा को हयात कहता है ?
तीन को अब जो सात कहता है
बस वही ठीक बात कहता है
क्यूँ न तस्लीम उसको कर लूँ मैं
वो मिरे दिल की बात कहता है
कैसे कह दूँ कि वास्ता ही नहीं
रोज़ वो शुभ प्रभात कहता है
ऐतराज उसको है शहर पे बहुत
हाथ अक्सर जो हात कहता है
उसकी बीनाई भी है शक से परे
जो सदा दिन को रात कहता है
जीत जब…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on May 8, 2017 at 10:00am — 21 Comments
1- आंतरिक सम्बन्ध
**************
मैंने पीटा तो दरवाज़ा था
हिल उठी साँकल ...
खड़ खड़ कर के ....
और..
आवाज़ अन्दर से आयी
कौन है बे.... ?
बस...
मै समझ गया
तीनों के आंतरिक सम्बन्धों को
******
2- आग और पानी
*****************
आग बुझे या न बुझे
आग लग जाना दुर्घटना है, या साजिश
किसे मतलब है
इन बेमतलब के सवालों से
ज़रूरी है, अधिकार ....
पानी पर
सारा झगड़ा इसी…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on May 6, 2017 at 9:00am — 12 Comments
1222 1222 122
है तर्कों की कहाँ.. हद जानता हूँ
मुबाहिस का मैं मक़्सद जानता हूँ
करें आकाश छूने के जो दावे
मैं उनका भी सही क़द जानता हूँ
बबूलों की कहानी क्या कहूँ मैं
पला बरगद में, बरगद जानता हूँ
बदलता है जहाँ, पल पल यहाँ क्यूँ
मै उस कारण को शायद जानता हूँ
पसीने पर जहाँ चर्चा हुआ कल
वो कमरा, ए सी, मसनद जानता हूँ
यक़ीनन कोशिशें नाकाम होंगीं
मै उनके तीरों की जद,…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on May 1, 2017 at 11:00am — 22 Comments
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