सपने की झलक
स्वर्णिम कल्पनाओं में पले, सलोने-से, परितुष्ट सपने मेरे,
लगता है कई संख्यातीत संतप्त युगों पर्यन्त मैंने तुमको
आज जीवन-गति की लय पर यूँ ध्वनित देखा, गाते देखा।
वर्तमान के उजले संगृहीत प्रकाश में पुन: प्रदीप्त थे तुम,
समय की धारा पर मैंने तुमको लहरों-सा लहलहाते देखा।
जाने कितने अवशेष हैं अब सुख-निद्रा के यह प्रसन्न-पल,
गिने-चुने पलों की झोली भर कर रंजित मन में संप्रयुक्त
ऐसे ही उल्लास में अपने तू…
ContinueAdded by vijay nikore on May 27, 2013 at 1:00pm — 17 Comments
माँ ... श्रध्दांजलि !
(पावन माँ दिवस पर)
मैं प्राण-स्वपन तुम्हारा, तुमने सर्जन किया था मेरा,
कभी मैंने जन्म लिया था तुम्हारे पावन-अंदर,…
ContinueAdded by vijay nikore on May 7, 2013 at 3:30pm — 26 Comments
तुम, मेरी पहचान !
तुम अति-सुगम सरल स्नेह से मेरी
प्रथम पहचान
मेरे कालान्तरित काव्य की
अंतिम कड़ी,
गीतों की गमक…
ContinueAdded by vijay nikore on May 1, 2013 at 1:30pm — 26 Comments
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