जब जब जागी उम्मीदें ,
अरमानों ने पसारे पंख.
देखा बहेलियों का झुंड,
आसपास ही मंडराते हुए,
समेट लिया खुद को
झुरमुटों के पीछे.
अँधेरा ही भाग्य बना रहा.
हमारे ही लोग,
हमारे जैसे शक्लों वाले,
हमारे ही जैसे विश्वास वाले,
करते रहे बहेलियों का गुण गान.
उन्हें बताते रहे हमारी कमजोरियों के बारे में
बहेलिये भी हराए जा सकते हैं.
कभी सोचा ही नहीं .
उनकी शक्ति प्रतीत होती थी अमोघ.
जंगल में लगी आग में…
ContinueAdded by Neeraj Neer on May 23, 2014 at 9:36am — 23 Comments
जब सूरज डूब जायेगा
सब कुछ समा जाएगा
महासागर की अतल गहराइयों में.
पर्वत का तुंग शिखर भी
नहीं बचेगा तृण मात्र
हड्डियों तक का नहीं रहेगा अस्तित्व.
जीवित रहेंगे फिर भी
खारे पानी के जीव ..
...............
नीरज कुमार नीर
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Neeraj Neer on May 15, 2014 at 9:09am — 24 Comments
मेरी अगर माँ ना होती
मैं कहाँ से होता,
किसकी अंगुली पकड़ के चलता
किसका नाम लेकर रोता.
चलना फिरना हँसना गाना
तेरी भांति माँ मुस्काना
प्रेम के एक एक आखर
पग पग संस्कार सिखलाना
गोदी में सिर रखकर आखिर
निर्भीक कहाँ मैं सोता .
दुनियांदारी के कथ्य अकथ्य
जीवन यात्रा के सत्य असत्य
रंगमंच के सारे पक्ष
कुछ प्रत्यक्ष, कुछ नेपथ्य
राजा रानी के किस्सों संग
मन माला में कौन पिरोता..
ये जो वायु, आती जाती…
ContinueAdded by Neeraj Neer on May 10, 2014 at 10:07am — 14 Comments
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