For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Featured Blog Posts – June 2010 Archive (104)

ज़रूरी तो नही

उसका मुझसे दूर जाके मेरे पास आना ज़रूरी तो नही

जो भुला हो मुझे उसे मेरा याद आना ज़रूरी तो नही



आ जाती हैं इस चेहर पे खामोशियाँ कभी कभी

हर वक़्त, बेवजह मेरा मुस्कुराना ज़रूरी तो नही



आकर गले मिलते हैं यूँ तो मुझसे कई हर रोज़

हर शख्स का दिल मे उतर जाना ज़रूरी तो नहीं



कभी पीने पड़ते हैं गम तो कभी मिलते है आँसू

हर रात मेय से भरा हो पैमाना ज़रूरी तो नही



कुछ को मिलते हैं पत्थर,कुछ खुद पत्थर हो जाते हैं

ताजमहल बनवाए यहाँ हर दीवाना… Continue

Added by Pallav Pancholi on June 29, 2010 at 6:13pm — 2 Comments

मिलन का प्रथम प्रहर

चारुलता सी पुष्प सुसज्जित, चंद्रमुखी तन ज्योत्स्ना.

खंजन- दृग औ मृग- चंचलता, मानों कवि की कल्पना.

उन्नत भाल -चाल गजगामिनी, विधि की सुन्दर रचना है.

मंद समीर अधीर छुवन को, सच या सुंदर सपना है.

निष्कलंक -निष्पाप ह्रदय में, पिया-मिलन की कामना.

खंजन-दृग औ मृग-चंचलता, मानों कवि की कल्पना.

तना-ओट से प्रिय को निहारा, नयन उठे और झुक भी गए.

प्रिय- प्रणय की आस ह्रदय में, कदम उठे और रुक भी गए.

थरथर कांपे होंठ हुआ जब, प्रिय से उसका सामना.

खंजन-दृग औ मृग-चंचलता,… Continue

Added by satish mapatpuri on June 29, 2010 at 1:44pm — 2 Comments

वो पीपल का पेड़

वो पीपल का पेड़ था । सड़क के किनारे - फुटपाथ से लगा - सालो से खड़ा । उस सड़क के इस पार बस स्टैण्ड है । सुबह दफ्तर जाने के लिए इसी बस स्टैण्ड से बस लेती रही हूँ । दफ्तर ही क्यों शहर के किसी भी हिस्से में जाना हो तो बस लेने के लिए यही सबसे नजदीक का बस स्टैण्ड है । पिछले तेइस वर्षों से यही रुटीन है - सुबह साढ़े आठ बजे से पौने नौ बजे के बीच यहाँ पहुँचना होता है ताकि ठीक समय पर बस लेकर ठीक समय पर दफ्तर पहुँचा जा सके । मेरी ही तरह और भी हैं जो उसी समय पर उसी बस में सवार होते हैं । जब तक बस आए,… Continue

Added by Neelam Upadhyaya on June 28, 2010 at 2:46pm — 2 Comments

हल निकालने के बेढब तरीके

अपने देश

भारत में .......



जूते पहनने वाले

नंगे पैरों का दर्द सुनाते है ॥



अंगूठा छाप मंत्री

शिक्छा का अलख जागते है ॥



जिनके नौ - दस बच्चे है

परिवार नियोजन का पाठ पढ़ते है ॥



जिन्होनें जंगल साफ़ कर दिए

वही वृक्छारोपन कार्य चलाते है ॥



दिखाते है जो कानून को ठेंगा

वही नया कानून बनाते है ॥



जो पैसे लेते ,चोर से खुद

फिर कैसे चोर पकड़ ले आते है ॥



ऐ ० सी० में रहने वाले

गर्मी की कथा सुनाते है… Continue

Added by baban pandey on June 27, 2010 at 11:05pm — 3 Comments

हाइकु गीत: आँख का पानी संजीव 'सलिल'

हाइकु गीत:



आँख का पानी





संजीव 'सलिल'



*

आँख का पानी,

मर गया तो कैसे

धरा हो धानी?...

*

तोड़ बंधन

आँख का पानी बहा.

रोके न रुका.



आसमान भी

हौसलों की ऊँचाई

के आगे झुका.



कहती नानी

सूखने मत देना

आँख का पानी....

*

रोक न पाये

जनक जैसे ज्ञानी

आँसू अपने.



मिट्टी में मिला

रावण जैसा ध्यानी

टूटे सपने.



आँख से पानी

न बहे, पर रहे

आँख का… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on June 27, 2010 at 10:50pm — 4 Comments

मेरी उबड़ -खाबड़ गज़लें भाग -4

(एक मजदूर की सोच )

ना मैं कविता जानता हु ,ना ही ग़ज़ल जानता हु

जिस झोपड़ी में रहता हु उसे महल मानता हु ॥

ना मैं राम जानता हू ,ना मैं रहीम जानता हू

माँ -बाप ने जो फरमाया ,फरमान मानता हू ॥

जिस इंसान ने इंसान को सताया , उसे हैवान मानता हू

जो इंसान की कद्र करे , मैं उसे कद्रदान मानता हू ॥

आशाओ के खंडहर में ,कब तक रहोगे दिल थामके

चल कुदाल उठा ,मैं मेहनत को अपना ईमान मानता हू ॥

Added by baban pandey on June 27, 2010 at 5:49pm — 3 Comments

गीत -2

सुनाएये कोई शोक -गीत

आज मन उदास है ॥

भरिये कोई रंग

आज मन , बेमन है ॥



फूलों का रंग भी फीका

भौरे भी दहशतज़र्द है

सब जगह उजड़ा हुआ चमन है

भरिये कोई रंग

आज मन , बेमन है ॥



चलो ,खोलता हू वे सभी परतें

जो पूरी न सकी तुम्हारी हसरतें

किससे कहू , किससे वयां करूं

आज खोता हुआ हर बचपन है

भरिये कोई रंग

आज मन , बेमन है ॥



कुछ चंदे दे दो भाई

महंगाई की मार से

मरने वालों के लिए

खरीदना आज कफ़न है

भरिये… Continue

Added by baban pandey on June 27, 2010 at 12:53pm — 3 Comments

Gzal

इक तेरे तसव्वुर ने महबूब यूं संवार दी ज़िन्दगी



कि तेरे बगैर भी हमने हँस कर गुजार दी ज़िन्दगी



राहें -मुहब्बत में दर्दो -ग़म देने वाले बेदाद सुन



तेरी इस सौगात के बदले हमने निसार दी ज़िन्दगी



तमाम उम्र यूं रखा हमने अपनी साँसों का हिसाब



जैसे किसी सरफ़िरे ने ब्याज़ पर उधार दी ज़िन्दगी



बात मुक़दर की जब आये शिकवा -गिला बेमानी है



जिसने तुझे गुल बनाया उसी ने मुझे ख़ार दी ज़िन्दगी



तूं ही बता ऐ ख़ुदा उसकी आतिश -अफ़सानी… Continue

Added by asha pandey ojha on June 27, 2010 at 10:16am — 9 Comments

गीत -1

गीत लिखने का दुः साहस किया हू ,आप ही लोग बताएं कैसा लगा । पति -मिलन के पहले की स्त्रियोचित कल्पना , मगर उनके लिए नहीं जिनका लव -आफेयर चल रहा है





गीत -1

आज सजने की बेला है , सज लू सजन

मन के साथ झूमे है, धरा और गगन ॥



आ रही है , ये ख़ुशबू कहां से कहुं

गा रही है , ये लज्जा कहां से कहुं

गर जानते हो तुम तो , बताओ सजन

मन के साथ झूमे है, धरा और गगन ॥



पलकों की छावं में हू , कबसे बिठाये तुम्हें

जुल्फों की छाया भी ,कबसे निहारे… Continue

Added by baban pandey on June 27, 2010 at 7:52am — 1 Comment

महगाई मारक यन्त्र

मेरे पास

एक महगाई यन्त्र है

यन्त्र क्या , मन्त्र है ॥



बहू-बेटियों से कहें

भारतीय संस्कृति को धयान में रखें

सोमबार /मंगलवार /रविबार को

उपवास करे

भगवन भी खुश

पति भी खुश

और होनेवाले समधी भी खुश

स्लिम बॉडी की बहू मिलेगी ॥



फिर ,

महंगाई, हमलोगों की क्या

हमलोग महगांई की कमर तोड़ देंगे ॥



कुछ दिनों तक ऐसा करेगें

हमलोग

सोमालिया देश के वासी जैसे दिखेगें

संयुक्त राष्ट्र का ध्यान टूटेगा

मुफ्त का गेहू… Continue

Added by baban pandey on June 26, 2010 at 9:04pm — 1 Comment

कितना बदल गया इंसान

जाने क्या हो गया है
आजकल के इंसान को .
पेड काट के आता है
बिल्डिंग बना जाता है|

मार्बल मकराना पत्थर
खूब अच्छे से पहचानता है
बस बुढे बाप की
बढ़ती पथरी नहीं देख पता |

स्वार्थ जलन मोह धन वासना
लक्ष बन जाता है
गौर से देखो यारो इंसान
जानवर से भी पीछे नज़र आता है |



लेखक :- आनंद वत्स .

सह्रदय आभार- आदरणीय बब्बन पाण्डेय जी ..आपसे प्रेरणा मिली है |

Added by Anand Vats on June 26, 2010 at 3:00pm — 4 Comments

अब गोरैया कहां जायेगी

(महानगरों की आवास समस्या पर ...)

पहले

घर के आँगन में भी

बना लेती थी

गोरैया अपना घोसला ॥



दाने की खोज में

भूलकर/भटककर

पहुँच गयी एक गोरैया

महानगर में ॥



पेड़ नहीं थे वहां

कहां बनाती अपना घोसला ॥



बिजली का खम्भा ही

एकमात्र विकल्प था

तिनका -तिनका जोड़ कर

बनाया अपना घोसला ॥



फिर एक दिन

बिजली कर्मियों ने

नष्ट कर दिया उसका घोसला ....

अंडे फूट गए ॥

अब गोरैया कहां जायेगी… Continue

Added by baban pandey on June 25, 2010 at 11:00pm — 5 Comments

मानवता का अपहरण

यादों के समंदर में जब और जितनी बार डूबकी लगाया हूँ उतनी ही बार ईश्वर की असीम कृपा से कुछ न कुछ मिलता ही रहा है . यादें कुछ तो माँ के आँचल के समान ठंडक देने वाली होती हैं, कुछ यादें तो मन का मानों सन्धिविचेद कर देती रही हो भला इस मनोदशा को ईश्वर के अलावे कौन जान पाया है ! अगर कोई फरिश्ता उस मनोदशा को जानने की कोशिश भी करता है तो शायद इस संसार में उनकी गिनती एक अपवाद ही बन कर रही गयी हो . बचपन में माँ -बाप ,गुरुजनों से जो प्यार और शिक्षा मिली वो तो गंगाजल के सामान पवित्र था .आज भी सोचता हूँ तो… Continue

Added by Devesh Mishra on June 25, 2010 at 8:00pm — 3 Comments

दो शब्द प्यार के बोल कर देखो ,

दो शब्द प्यार के बोल कर देखो ,

दिल में उतर जाओगे ,

हर कदम पर साथ में पाओगे ,

मगर इसके लिए कुछ करना होगा ,

दो शब्द प्यार के बोलना होगा ,

भूलना होगा वो सब नफरत भरे शब्द ,

भूलने के बाद सोचने की जरुरत नहीं ,

कारण, नफ़रत सोचने के लिए नहीं होती,

सोचने के लिए तो बस प्यार होता हैं ,

मेरी बातो पे विश्वास ना हो तो ,

दो शब्द प्यार के बोल कर देखो ,

दिल में उतर जाओगे,

( राणा जी के सुझाव के अनुसार यह पोस्ट प्रबंधन स्तर से एडिट कर वर्तनी और…

Continue

Added by Neet Giri on June 25, 2010 at 7:30pm — 9 Comments

इस मुस्कुराहट का राज ,

मुस्कुराहट का राज़



मैं मुस्कुरा कर स्वागत करती हूँ ,

और वो हरदम पूछते हैं ,

इस मुस्कुराहट का राज़ ,

और मैं कहती हूँ ,

मैं हर दम खुश रहती हूँ ,

कारण गम मेरा हमदम नहीं हैं ,

खुशियों से हमने दोस्ती की हैं ,

अगर आप रोता हुआ चेहरा देखेंगे ,

और फिर करेंगे आप सवाल ,

क्या दुःख हैं हमें बतायो,

और मैं अपने दोस्तों को ,

अपने दुःख से दुखी न करूंगी ,

इसलिए आप को इस सवाल का ,

मौका नहीं दूंगी ,

हरदम खुश रहूंगी ,

अब समझ गए… Continue

Added by Neet Giri on June 25, 2010 at 6:30pm — 4 Comments

मैं खरगोश नहीं बनना चाहता

बनते -बिगड़ते
संबंधों की आपा-धापी में
मैं खो जाता हू ॥

हड़बड़ी के चक्कर में
प्रेम खोजने के बदले
नफरत खोज लेता हू ॥

रिंग पहनाने को
शादी में बदल पाता
उससे पहले तलाक खोज लेता हू ॥

इसलिए .....
मैं अब
जिंदगी के रेस में
खरगोश नहीं ,
कछुआ बन कर ही
मंजिल तक जाना चाहता हू ॥

Added by baban pandey on June 25, 2010 at 9:20am — 5 Comments

मैं तुम्हे पढना चाहता हु ...

तुम्हारी बातें

एक -एक शब्द जैसे ॥



श्वासों का आना -जाना

किताब के पन्ने

पलटने जैसा ॥



तुम्हारी मुस्कराहट

कविता पढने जैसी ॥



तुम्हारी हँसी

ग़ज़ल की पंग्तिया ॥



तुम्हारी उम्र का

हर गुजरा वक़्त

एक अध्याय समाप्त होने जैसा ॥



तुम्हें समझना

एक समझ न आने वाली

रहस्यमई कहानी जैसा ॥



सचमुच, तुम्हें पढना

एक किताब पढने जैसा ॥



हे ! प्रिय !!!

मैं पढ़ूंगा तुम्हें जीवन… Continue

Added by baban pandey on June 25, 2010 at 7:45am — 4 Comments

मुक्तिका: ज़िन्दगी हँस के.... ---संजीव 'सलिल'

आज की रचना : मुक्तिका:

:संजीव 'सलिल'





ज़िन्दगी हँस के गुजारोगे तो कट जाएगी.



कोशिशें आस को चाहेंगी तो पट जाएगी..





जो भी करना है उसे कल पे न टालो वरना



आयेगा कल न कभी, साँस ही घट जाएगी..





वायदे करना ही फितरत रही सियासत की.



फिर से जो पूछोगे, हर बात से नट जाएगी..





रख के कुछ फासला मिलना, तो खलिश कम होगी.



किसी अपने की छुरी पीठ से सट जाएगी..





दूरियाँ हद से न ज्यादा हों 'सलिल'… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on June 24, 2010 at 10:58pm — 1 Comment

अपना दुःख किससे कहू मैं ,

अपना दुःख किससे कहू मैं ,

यहा कौन हैं सुनने वाला ,

हर तरफ फैला अन्धियारा ,

धधक रही दहेज की ज्वाला ,



बेटी के बाप तो हमभी हैं ,

बड़ी मुश्किल से पढ़ा पाए ,

हम खाय आधपेट मगर ,

बेटी को हम बी कॉम कराए ,



लड़का बढ़िया खोज रहा हु ,

दहेज़ के बिना हैं परेशानी ,

अब सोचता हु क्यों पढ़ाया ,

जन्मते क्यों नहीं नमक खिलाया ,



मर गई होती ये तब ,

परेशानी ये ना आती अब ,

ये लड़का वालो जरा समझो ,

हम भी पढाये ये तो समझो… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on June 24, 2010 at 4:00pm — 5 Comments

एक मृत लड़की की चिठ्ठी

मेरे पापा ने

माँ का गर्भ जांच कराया

सांप सूंघ गया उन्हें

शुक्र हो डाक्टर का

उन्होंने कहा ...

"एक ही बार माँ बन सकती है

आपकी पत्नी "

भूर्ण -हत्या से बच गयी मैं ॥



मेरी माँ ने

सिल्क साडी पहननी छोड़ दी

शौक -मौज फुर्र्र

मेरे विवाह की चिंता में

जन्म से ही ॥



पढाई के दौरान

प्यार हो गया एक लड़के से

शादी का लालच दिया उसने

माँ -पिता को खेत न बेचना पड़े

दहेज़ के लिए

यह सोच , भाग गयी उसके साथ… Continue

Added by baban pandey on June 24, 2010 at 4:00pm — 3 Comments

Featured Monthly Archives

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल के बाद पटल पर आपकी मुग्ध करती गजल से मन को असीम सुख…"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service