सपनों के झिलमिल से जुगनू पलकों पर पल भर आ ठहरे...
नन्हें पर हैं, पर भोला मन
नभ छू ले करता अभिलाषा,
कंटीले तारों की जकड़न
देगी केवल हाथ हताशा,
अन्धकार नें बरबस नोचे परियों के भी पंख सुनहरे...
सपनों के झिलमिल से जुगनू पलकों पर पल भर आ ठहरे...
सपनों को मंज़ूर हुआ कब
ढुलक आँख से झरझर बहना,
हँसकर स्वीकृत किया उन्होंने
सीपी में मोती बन रहना,
सागर ने अपने सीने में राज़ छुपाए हैं कुछ गहरे...
सपनों के…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on June 4, 2015 at 9:30pm — 15 Comments
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