खा खाकर मोटी हुई,जैसे मोटी भैंस !
मै दुबला होता गया ,मेरे धन पे ऐश !!
सुबह शाम गाली सुनूँ ,हरदम करती चीट !
धोबी का सोटा उठा ,अक्सर देती पीट !!
मै घर का नौकर बना ,झेलूँ बस उपहास !
रूठ विधाता भी गये,जाऊं किसके पास !!…
Added by ram shiromani pathak on June 25, 2013 at 8:30pm — 48 Comments
ताकत झांकत लूटत पाटत,छीनत बीनत नोट फटा फट !
लोगन की परवाह नहीं अरु ,चाट रहे सब देश चटा चट!!
दौड़त भागत घूम रहे अरु, खाइ रहे सब कोष गटा गट !
बन्दर बांट करें फिर झूमत ,आपन लूट बढ़ाइ झटा झट !!
राम शिरोमणि पाठक"दीपक
मौलिक…
Added by ram shiromani pathak on June 8, 2013 at 5:30pm — 21 Comments
अडिग खड़ा है
चिर स्थिर
पुष्प से लदा
धरा से आलिंगन करता
तरुवर की निः स्वार्थ सेवा
सम भाव
वाह!
सब को देखने दो कुछ क्षण
रजत जड़ी ओस की डाल
चंचल है
हिला देती है बयार
तुम भी आओ मधुप
प्रतीक्षारत है कली
मृदुल होंठो के मकरंद पी लो
अरे ! ये क्या ?
मेघ भी उतर रहे हैं
हँसते हुए
शांत सरोवर
सरिता
बूदों संग मिलकर
अद्भुत संगीत सुनायेंगे
दादुर की व्याकुलता तो देखो…
ContinueAdded by ram shiromani pathak on June 4, 2013 at 10:00pm — 21 Comments
बाल सभी झड़ गये,बुढ्ढा अब दिखता हूँ !
हमउम्र औरतें भी,चाचा कह देती हैं !!
पत्नी भी मारे है ताना,भाग्य मेरे फूट गये !
कभी कभी वो भी मुझे,बुढ्ढा कह देती है !!
अपने ही जब कभी,अपना मज़ाक ले लें !
किससे कहूँ कितनी,पीड़ा मुझे होती है…
Added by ram shiromani pathak on June 2, 2013 at 1:30pm — 25 Comments
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