फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फ़ेलुन/फ़इलुन
एक मिसरे में इधर मैंने मेरा दिल बाँधा
दूसरे में तेरे रुख़्सार का ये तिल बाँधा
यूँ लगा जैसे हुवा सारा ज़माना रौशन
मैंने दौरान-ए-ग़ज़ल जब महे कामिल बाँधा
ख़ून आँखों से टपकता है तो हैरत कैसी
तूने क्यूँ कस के बदन से ये सलासिल बाँधा
मुनकशिफ़ हो गया दुनिया पे मेरा फ़न आख़िर
उसने साफ़ा मेरे सर पे सर-ए-महफ़िल बाँधा
उस से अल्फ़ाज़ की कुछ भीक थी दरकार मुझे
इस लिये मैंने मियाँ शैर…
Added by Samar kabeer on June 17, 2015 at 7:00pm — 31 Comments
Added by Samar kabeer on June 14, 2015 at 10:57am — 32 Comments
Added by Samar kabeer on June 8, 2015 at 11:09am — 36 Comments
Added by Samar kabeer on June 3, 2015 at 11:04pm — 25 Comments
Added by Samar kabeer on June 1, 2015 at 11:00am — 29 Comments
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