गुमनाम अंधेरे में देखो भारत का भविष्य पल रहा
दो जून रोटी की खातिर कोमल बचपन सुबक रहा
कलम चलाने वाले नन्हे हाथ झूठन साफ कर रहे
बस्ते उठाने वाले कंधे परिवार का बोझ उठा रहे
माँ के आंचल का फूल दरबदर की गाली खा रहा
भूखे पेट अपमान का घूंट पीकर जीवन गुजार रहा
हंसने-खेलने-पढ़ने की उम्र में मजदूर बन गये
बचपन की किलकारी खो गई मांझते-धोते
निरीह तरस्ती ऑखें उठ रही कुछ आस में...
इंसानियत के ठेकेदारों नियमों को मान लो
मंझवाने से अच्छा कल का भविष्य मांझ…
Added by babitagupta on June 10, 2021 at 3:30pm — No Comments
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