For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव's Blog – June 2016 Archive (5)

ग़ज़ल : कभी हुयी थी निसार आंखे कभी बहारे हयात आई

1212 212 122  1212 212 122

            

कभी हुयी थी निसार आंखे कभी बहारे हयात आई

नहीं दिखा फिर मुझे सवेरा सदैव हिस्से में रात आई

 

बहुत बटोरे थे स्वप्न आतुर बहुत सजाये थे ख़्वाब मैंने 

मेरी मुहब्बत मेरी जिदगी विदा हुयी तब बरात आयी

 

घना तिमिर था न रश्मि कोई न सूझ पड़ता था पंथ मुझको

बिना रुके ही मैं अग्रसर था  निदान मंजिल हठात आई  

 

मुझे स्वयं पर रहा भरोसा नहीं जुटाये अनेक साधन

मुझे बनाने मुझे सजाने  कभी-कभी…

Continue

Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 26, 2016 at 5:00pm — 12 Comments

चीखते नारों से क्या होगा ?

    बहरे हज़ज मुसम्मन सालिम

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन

    1222 1222 1222 1222

            ग़ज़ल

सड़क पर बजबजाते चीखते नारों से क्या होगा

हवा में फुस्स हो जायें जो, गुब्बारों से क्या होगा ?

 

लडाई है बहुत बाकी बहुत कुछ कर गुजरना है

नही है हौसला दिल में तो नक्कारों से क्या होगा ?

 

जिन्हें हमने अता की है,  हकूमत देश की यारों

उन्ही में बदगुमानी है तो उद्गारों से क्या होगा ?

 

पड़े है एक कोने…

Continue

Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 15, 2016 at 8:39am — 18 Comments

षड्यंत्र (लघु कथा )

 सारा देश दहशत में था .भारत के सर्वाधिक सम्मानित नेता देश के सुरक्षा संबंधी गुप्त दस्तावेज दुश्मन देश को सौंपते हुए कैमरे में कैद कर लिए गये थे . मीडिया में देश के खिलाफ इस प्रकार के षड्यंत्र में नेता जी के लिप्त होने  को लेकर गरमागरम बहस चालू थी . जिस टी वी चैनल ने यह स्ट्रिंग आपरेशन किया था , वह बार-बार उन दृश्यों को  जनता के सामने परोस रहा था .या सीधे -सीधे देश-द्रोह का मामला था  अनेक चैनेल इस विषय पर सीधे नेता जी से सम्पर्क कर उनकी ज़ुबानी सारा सत्य उगलवाना चाहते थे . नेता जी इन सब…

Continue

Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 12, 2016 at 6:42pm — 5 Comments

जिन्दगी तनहा तो मौत भी तनहा

बहरे मुजतस मुसमन मख़बून महज़ूफ

मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन

1212     1122      1212      22

 

कहाँ गए थे यूँ ही छोड़कर मुझे तनहा

बिना तुम्हारे मुझे ये जहां लगे तनहा  

 

कभी-कभी तो बहुत काटता अकेलापन

मगर न भूल कि पैदा सभी हुये तनहा

 

तमाम उम्र जो बर्दाश्त है किया हमने     

समझ वही सकता जो कभी जिये तनहा

 

मगर न फिर कभी वो बात रात आ पायी

है याद आज भी वो शाम जब मिले तनहा

 

बिखर ही…

Continue

Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 9, 2016 at 6:30pm — 10 Comments

उसकी नजर जब पास है

बहरे रजज़ मुसम्मन सालिम

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन

2212 2212 2212 2212



गज़ल



छिपता नहीं है दर्दे दिल पर तुम कसम तक खा गये

परहेज जो इतना किया पर क्या छुपा कर पा गये



तुम जानते इस दर्द को पहचानते हमदर्द को

गम बांटते तब ठीक था यह बात क्या गम खा गये



पहला अभी यह खब्त था पुरजोर सा वह जब्त था

सायक चुभा कब चश्म का धनु देखकर घबरा गये



यह इश्क है या फिर सजा इसके बिना भी क्या मजा

दृग-कोर ने क्या छू लिया… Continue

Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 4, 2016 at 4:22pm — 1 Comment

Monthly Archives

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Sunday
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय Dayaram Methani जी, लघुकथा का बहुत बढ़िया प्रयास हुआ है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"क्या बात है! ये लघुकथा तो सीधी सादी लगती है, लेकिन अंदर का 'चटाक' इतना जोरदार है कि कान…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service